कुदरती आलम है चांद का अपने अक्ष पर घूमना
पागलपन की सनक है उसे धरती पर उतारना
आभूषण है वह चांद का समझते हो जिसे दाग
मिटाने की करोगे कोशिस तो लग जायेगी आग
गुल-ओ-खार की द्वंद्वात्मक एकता जहां का उसूल
तोड़ना यह समग्रता है मानव की नादान भूल
जिंदा रहने की शर्त है ज़िंदगी की जीत में यकीन
मज़मून-ए-जन्नत को करेगी साकार जमीन
आयेगी इस चमन में अमन-ओ-चैन की बहार
होंगे जब गुलामी-ए-ज़र के सभी बंधन तार तार
आग से पेट की लगता है भूखे दिलो में दाग
न बुझ सकी ये आग तो हो जायेगा इंक़िलाब
महकूम-ओ-मजलूम के चमन में आयेगी बहार
हो जायेगा ये जहां तब हर्षोल्लास से गुल्जार
(ईमिः04.06.2014)
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