Tuesday, June 3, 2014

क्षणिकाएं 24 (451-62)



451
लड़ता है क्रांतिकारी मज़लूम के लिए
क्योंकि उसे लड़ना ही है
लड़ना है एक सुर्ख सवेरे के लिए
बेपनाह के बसेरे के लिए
डर डर कर नहीं लड़ी जाती जंग
इसीलिए हो निडर चलना है संग संग
बंद कर देगा जिस दिन डरना आवाम
मच जाएगा निज़ाम-ए-ज़र में कोहराम
हों उसके पास कितने भी तोप और बम
डरेगा वह हमसे ग़र डरना बंद कर दें हम
हों उसपे त्रिसूल-ओ-तलवारकितने भी
कांप जायेगा हमारी निर्भय ललकार से ही
चाहते हैं ग़र इंसाफ के लिए लड़ना
छोड़ना होगा भूत-ओ-भगवान से डरना
लड़ना ही है हमें, लड़े बिना कुछ नहीं मिलता
हक़ के एक एक इंच के लिए है लड़ना पड़ता
(ईमिः28.05.2014)
452
धूप में चलने की आदत है कारवानेजुनून को
बेपनाही के मौज में पनाह की जरूरत नहीं.
(ईमिः28.05.2014)
453
लगते रहेंगे वज़ूद पर ज़ख़्म
वक़्त के सर होने तक
रिसते रहेगे ज़ख़्म
ज़ंग-ए-आज़ादी का असर होने तक
(ईमिः29.05.2014)
454
बागियों में अदावत भड़काता हुक़्मरान
गरीब ही गरीब को करता लहू-लुहान
एक से दूसरे को खतरा बताता हुक्मरान
कराता है दोनों में वीभत्स घमासान
छिड़कता ज़ख़्मों पर फिर नमक हुक्मरान
लूटता दोनों के खून-पसीने का मान
अफवाहों से गफलत फैलाता हुक्मरान
होगा ही कभी लोगों को इस चाल का भान
तब नेस्त-ए-नाबूद हो जायेगा हुक्मरान
करेगा आवाम तब आज़ादी का ऐलान
(ईमिः28.05.2014)
455
दर्द-ए-दिल की दवा का क्या काम
मिल गया जो खुदा कोई
वैसे राज की बात है कि
खुदा एक वहम है भूत की तरह
[ईमि/29.05.2014]
456
प्यार का दौरा पड़ता है तो ऐसा ही हो जाता है
दिल सोचता है और दिमाग आराम करता है
दुनिया की जनसंख्या हो जाती है सिर्फ एक
हो जाती हैं गायब कायनात की छवियां अनेक
(ईमिः29.05.2014)
457
रश्म अदायगी में थामना पल्लू तौहीन है मुहब्बत की
दिल-ओ-दिमाग के मेल का ख़लूस है इज़्ज़त उसकी
(ईमिः31.05.2014)
458
मयस्सर होते हैं आशिकों को  प्यार के दो लफ्ज़
शहंशाहों के नसीब में तो फर्शी-सलाम ही लिखा है
(ईमिः01.06.2014)
459
लीक पर चलने को एक फेसबुक मित्र Pramod Kumar Singh ने एक मशविरा मांगाः
"इक मशवरा चाहिए था साहेब !
दिल तोड़ा है इक बेवफा ने , जान दे दूं या जाने दूं ।"

चलिए दे देता हूं,

वैसे मुफ्त का मशविरे की क़द्र कोई करता नहीं
निःस्वार्थ फितरत की बात कोई मानता नहीं

तोड़ दे जिस दिल को एक हल्की बेवफाई
कीजिए मरम्मत और दिल की सफाई

बहुत ही आसान काम है जान दे देना
मिल ही जाता है कोई-न-कोई बहाना

मुश्किल है ज़िंदगी सी ज़िंदगी जीना
गढ़ते हुए नैतिकता का नया पैमाना

कर लेता है हर कोई आसान काम
मुश्किलों को आइए बना दें आसान

वैसे भी वफाई में मिल्कियत की बू आती है
अपन को तो पारस्परिकता की खुशबू सुहाती है

आइए जलाते हैं वफाओं की होली
और मनाएं जश्न बनकर हमजोली
(ईमिः 03.06.2014)

(हा हा यह तो तफरी में गज़ल टाइप कुछ हो गयी)
460
डरना बंद कर दो
वह चाहता है डरी रहो
वह डरने लगेगा
हमसे ही नहीं
अपने आप से भी
जिस दिन हम डरना बंद कर देंगे
(ईमिः 02.06.2014)
461
उजाड़ दो यादों की दुनिया जो इतनी छोटी हो
छोटा सा टीला ही जिसमें पहाड़ की चोटी होे
दो इस दुनिया को हिमालय  सा विस्तार
ऊंचाई का जिसके हो न कोई आर-पार
उमड़ता है जब क्षितिज में मानवता का सैलाब
उगता है दुनियां में एक नया आफताब
जब तलक रहेगी दुनिया की जनसंख्या बस एक
रुकेगा नहीं मानवता के विरुद्ध जारी फरेब
आइए बनाते हैं एक-एक मिलाकर अनेक को
अंध आस्था की जगह लाते हैं विवेक को
चलेंगे सब हम जब मिलकर साथ साथ
फरेबों की सारी दुनिया हो जायेगी अनाथ
आइए लगाते हैं मिलकर नारा-ए-इंक़िलाब
निजी प्यार भी होगा उसी में आबाद
(बस ऐसे ही तफरी में)
(ईमिः03.06.2014)
462
लीक पर चलने को कहते हैं भेड़चाल
नये रास्ते तलाशना है तेरा कमाल
(ईमिः04.06.2014)

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