वैचारिक शून्यता एक अमूर्त अवधारणा है. उपभोक्ता संस्कृति ने शिक्षा को उपभोक्ता संस्कृति बना दिया है, यह इलाहाबाद या दिवि की बात नहीं है.सभी कैंपसों में प्रतिक्रांतिकारी विचारों का बोलबाला है. हिंदी पट्टी के अन्य विश्वविद्यालयों की तरह इलाहाबाद विवि शिक्षकों और छात्रों में हमेशा जातिवाद का बोलबाला रहा है. दबंगों की तूती बोलती थी. दिवि और इविवि में हमेशा छोटे-छोटे प्रगतिशील समूह-संगठन रहे हैं जो समय समय पर सामाजिक-शैक्षणिक सरोकार के मुद्दों पर आंदोलित होते रहे हैं. ज्यादातर छात्र कैरियर के अलावा कुछ नहीं सोचते. 4-8 साल तोतों की तरह कोचिंग के नोट रटते हैं और सफल होते ही दहेज से शुरू करके देश लूटने में मशगूल हो जाते हैं और पढ़ने-सोचने का मौका ही नहीं मिलता. जनेवि का राजनैतिक चरित्र थोड़ा भिन्न है.
दक्षिण के विवि ही नहीं यह एक विश्वव्यापी सच्चाई है. परिवार-विद्यालय-विवि सभी संस्थाएं अनुशासन-आज्ञाकारिता आदि के नाम पर बच्चों की स्वतंत्र चिंतन की स्वाभाविक प्रवृत्ति को कुंद कर भेड़ और तोते बनाते हैं. दिवि का सामंती कुलपति अब 4 वर्षीय स्नातक पाठ्यक्रम के जरिए गधे बनाना चाहता है. कई चिंतनशील छात्र प्रज्ञा और अन्वेषण की नई-नई ऊंचाइयां समाजीकरण और शिक्षा के चलते नहीं, इसके बावजूद तय करते हैं.
Sumant Bhattacharya मित्र, गैरबराबरी-शोषण-दमन यानि अन्याय की बुनियाद पर पर खड़ी सभ्यता के संपूर्ण इतिहास में प्रतिरोध की संभावनाएं हमेशा ही रही हैं, जब भी उन्हें सार्थक स्वर मिले प्रस्फुटित भी हुईं और होंती रहेंगी. छात्र-युवा होने और छात्र-युवा शक्ति होने में छात्र-युवा चेतना -- समाज की विवेकसम्मत समझ और अन्याय से लड़ने का जज़्बा -- की मुश्किल कड़ी है. छात्र चेतना अभाव छात्र एक भीड़ भर बने रहते हैं. क्रांतिकारी छात्र चेतना का निर्माण हमारा उद्देश्य होना चाहिए.
दक्षिण के विवि ही नहीं यह एक विश्वव्यापी सच्चाई है. परिवार-विद्यालय-विवि सभी संस्थाएं अनुशासन-आज्ञाकारिता आदि के नाम पर बच्चों की स्वतंत्र चिंतन की स्वाभाविक प्रवृत्ति को कुंद कर भेड़ और तोते बनाते हैं. दिवि का सामंती कुलपति अब 4 वर्षीय स्नातक पाठ्यक्रम के जरिए गधे बनाना चाहता है. कई चिंतनशील छात्र प्रज्ञा और अन्वेषण की नई-नई ऊंचाइयां समाजीकरण और शिक्षा के चलते नहीं, इसके बावजूद तय करते हैं.
Sumant Bhattacharya मित्र, गैरबराबरी-शोषण-दमन यानि अन्याय की बुनियाद पर पर खड़ी सभ्यता के संपूर्ण इतिहास में प्रतिरोध की संभावनाएं हमेशा ही रही हैं, जब भी उन्हें सार्थक स्वर मिले प्रस्फुटित भी हुईं और होंती रहेंगी. छात्र-युवा होने और छात्र-युवा शक्ति होने में छात्र-युवा चेतना -- समाज की विवेकसम्मत समझ और अन्याय से लड़ने का जज़्बा -- की मुश्किल कड़ी है. छात्र चेतना अभाव छात्र एक भीड़ भर बने रहते हैं. क्रांतिकारी छात्र चेतना का निर्माण हमारा उद्देश्य होना चाहिए.
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