वही विद्वान (दिवि के एसी-ईसी सदस्य) जो आंख बंद कर यवाईफयूपी पर अंगूठा लगाये उन्होने ही गुण-दोष पर चर्चा के बिना इसकी विदायी पर अंगूठा लगा दिया. इन्हें चेखव की कहानी गिरगिट पढ़ना चाहिए, ऐसे गुलाम-मानसिकता के लोग विद्या के संरक्षक, संचालक हैं जब कि उक्ति है, सा विद्या या विमुक्तये. साहब ने कहा सकार, स्कारस्कार से प्रतिध्वनित हुआ दरबार, फिर साहब ने बदला अंदाज बोला नकार, सुनाई दी प्रतिध्वनि न्कार न्कार....... इन प्रोफेसरों और प्रिंसिपलों का पर्दाफास और बहिष्कार होना चाहिए.
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