Saturday, June 28, 2014

ग़ाीफिल की एक ग़ज़ल परः

ग़ाीफिल की एक ग़ज़ल परः

शुक्रिया किस बात का गाफिल
ये तो है खानाबदोश महफिल
हवा ने दरवाजा खटकाया होगा
लगा कोई मेहमान आया होगा
देगा क्यों कोई आपको आवाज़
है जो माशूकी जल्वे का मोहताज
सराब-ओ-सबाब पर फन वारा
बनना चाहते हो मशीहा आवारा
रेगिस्तान में मोती की तलाश
करेगी ही मन-मानस को हताश
चाहते हो ग़र मोती तलाशना
सीखना होगा गहरे समुद्र में तैरना
शराब-ओ-सबाब पर है ग़ज़ल वारी
क्यों करेंगे लोग आपकी ग़मखा़री
चाहते हैं गर लोग दें आपको आवाज़
ग़म-ए-जहां से बुनिए ग़ज़ल की साज
(हा हा ग़ाफिल साहब, दिल पर न लें, गफ़लत में स्वस्फूर्त तुकबंदी हो गयी)
(ईमिः 29.06.2014)

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