लेनिन संसदीय लोकतंत्र के विरोधी थे। राज्य और क्रांति में उन्होंने लिखा है कि हर 5 साल में हम चुनते हैं कि शासक वर्ग का कौन हिस्सा हमारा उत्पीड़न करेगा। मार्क्सवाद और आजादी पर फेसबुक पर एक कमेंट लिखा गया था, तब से क्यूबा, चीन और रूस के संदर्भों में इस पर लेख लिखने की सोच रहा हूं, देखिए कब 100 मन तेल आता है? जब यह जनतंत्र इंग्लैंड में उग ही रहा था तभी रूसो ने इसे नकली आजादी बताया था। रूसो कई मायने में मार्क्स का पूर्वाभास देते हैं। "यदि गुलामी बलपूर्वक लादी गयी हो तो बलपूर्वक उसे उखाड़ फेंकना न सिर्फ वाजिब है बल्कि वांछनीय भी है"। लेनिन की जिंदगी युद्ध, गृहयुद्ध, महामारी की तबाही के प्रबंधन में ही बीत गयी। संसदीय जनतंत्र के सिद्धांत के बदले सहभागी जनतंत्र के रूप में सर्वहारा की तानाशाही के तहत जनतांत्रिक केंद्रीयतावाद के वैकल्पिक सिद्धांत के प्रयोग का अधिक समय नहीं मिला। नई आर्थिक नीति में खेती समेत कई मसलों पर दो कदम पीछे की बाते हैं। उनकी अप्रैल थेसिस के जो 2 विरोधी थे उन्हें पार्टी नहीं निकाला गया बल्कि वे पोलिटब्यरो के सदस्य बने। अब क्लास की तैयारी कर लूं, बाकी फिर कभी। इस विषय पर भी 100 मन तेल वाली बात लागू होती है।
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