मेरी नास्तिकों की अभिव्यक्ति की आजादी की एक बात पर एक सज्जन ने कहा मैं अपनी पत्नी को क्यों नहीं नास्तिक बनाता? दूसरे सज्जन ने कहा जब भगवान बिगाड़ने आ जाएगा तब पता चलेगा। उस पर:
भाई वे बाभन से इंसान बन चुकी हैं, बेटी की शादी उसके अब्राह्मण व्वाय फ्रेंड से करने को खुशी-खुशी राजी हो गयीं। विभास मैंने इवि के किसी ग्रुप में धर्म पर लंबा लेख डाला था, धर्म खत्म करने का मतलब सुख की भ्रांतियां खत्म करना है जो धर्म देता है। हम धर्म नहीं खत्म करना चाहते उन कारणों को खत्म करना चाहते है जो धर्म की जरूरत पैदा करता है। जब वास्तविक सुख मिलेगा, भ्रांति अनावश्यक हो जाएगी, धर्म अपने आप खत्म हो जाएगा। मैं जब आप जैसे उच्च शिक्षित को बाभन से इंसान नहीं बना पा रहा हूं तो मेरी पत्नी तो, मर्दवादी सामाजिक संरचना के चलते पांचवी तक पढ़ी हैं। आपके धर्म से मुझे कोई मतलब नहीं न आपकी ईश्वर की कल्पनाओं से, जब तक यह आपका निजी मामला रहता है, मुझे परेशानी है धर्म की सार्वजनिक हत्या-बलात्कार-आगजनी और आतंक के रूप में आपराधिक अभिव्यक्ति से। मेरी पत्नी नवरात्रि रखती हैं लेकिन उन्हें मेरे खाने-पीने पर कोई आपत्ति नहीं है न मुझे उनके निजी व्रत पर। हॉस्टल की मेस में संडे को बहुत बढ़िया चिकन बिरियानी बनती है, कभी मेस में जाने का मन न हुआ तो मंगाकर लॉन में खा लेता हूं। घर में मांसाहारी भोजन जाने से उनका मन खराब हो जाता है, मैं घर के अंदर न बनाता हूं न खाता हूं। मैं किसी से बाभन से इंसान बनने का आग्रह नहीं करता, यह बता देता हूं कि मैं बन गया हूं सुखद होता है, चाहे तो प्रयोग करके देख लो। यह क्या मानसिक दिवालियापन है कि जो बात है, उस पर कुछ तर्क देने की बजाय या तो मूर्खता का फतवा जारी करोगे या मेरी पत्नी की धार्मिकता की बात करोगे। एक हमारे सहकर्मी ने भी यही सवाल किया था कि मैं अपनी पत्नी को नास्तिक क्यों नहीं बना पाया, मैंने कहा आप तो साहित्य में पीयचडी हैं, जब आपको भूमिहार से इंसान न बना पाया तो मेरी पत्नी तो ज्यादा पढ़ी-लिखी नहीं है और हमारी बचपन की शादी है।
Jay Bux Singh Chanchal एक बार पत्नी ने कहा था, 26 साल पहले, नौकरी नहीं थी, कलम की मजदूरी की बदौलत यचआईजी फ्लैट में किराए पर रहते थे। किसी पेमेंट की बात कर रहा था, उन्होंने कहा भगवान को नहीं मानते, इसीलिए तुम्हारे साथ गडबड़ होता है। मैंने कहा भगवान इतना छोटा है कि मेरे जैसे अदना आदमी से बदला लेने आ जाता है तो और भी उसकी ऐसी-तैसी करूंगा जो बिगाड़ना हो बिगाड़ ले। यदि कोई शिक्षक छात्र से किसी भी कारण बदले की भावना रखे तो वह शिक्षक होने की पात्रता खो देता है। जो जब बिगाड़ेगा मेरा बिगाड़ेगा न, आप मस्त रहिए।
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