जेयनयू में शिक्षा मंहगी कर गरीबों की पहुंच से दूर करने की सुयश सुप्रभ की एक पोस्ट पर कमेंट:
किसी समाज को गुलाम बनाना हो तो शिक्षा से उसे वंचित कर दो तथा शिक्षा प्रणाली को विकृत कर उन्हें कुज्ञान का केंद्र बना दो। अमानवीय वर्णाश्रमवाद इसी साजिश से तो इतने लंबे समय तक समाज को जड़ता के जाल में फंसाए रहा। वर्णाश्रम की अंतर्निहित अमानवीय संवेदना इसी में दिखती है कि बुढ़ापे में देखभाल के कष्ट से बचने के लिए उन्हें मरने जंगल भेज दो। लेकिन अब देर हो चुकी है, अब एकलव्यों ने कलम थाम लिया है और पुरातन वेद को इतिहास के कूड़ादान को समर्पित कर नया वेद लिख रहे हैं, नए गीत लिख रहे हैं, फैज को याद कर कह रहे हैं कि यह दरिया जो झूम के उट्ठे हैं, तिनकों से न टाले जाएंगे। महाराष्ट्र के किसानों ने राह दिखाया है, हर शहर की सड़कें परचमों से लाल हो जानी चाहिए। फेसबुक पर ट्रोलों से बचना चाहिए और उन्हें ब्लॉक कर देना चाहिए। शिक्षा को पैसा फेको-तमाशा देखो बनाकर बिनपैसे वाले तमाशाबीनों को वंचित करने की इनकी सजिश तोड़ने के लिए गेट क्रैश करना होगा। बिखरे बहुजन(दलित, आदिवासी, मजदूर, किसान, शिक्षित-अशिक्षित बेरोजगार) को एकता में लामबंद होना पड़ेगा। जय भीम-लाल सलाम नारे को अर्थ देना पड़ेगा।
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