Markandey Pandey अंधे और लंगड़े के मुहावरों के वैकल्पिक मुहावरे गढ़ने होंगे। किसी की ऐसी कमी को जो उसकी सायास स्व-अर्जित न हो उसका मजाक उड़ाना हमारी सामाजिक संवेदना की क्रूरता का द्योतक है। हमें तो इन्हें सलाम करना चाहिए कि एक ऐसी कमी के बावजूद वे हमारे साथ हर क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं, जिसके साथ जीने की हम कल्पना भी नहीं कर सकते। कंप्युटर सबके लिए क्रांति है, नेत्रहीन के लिए सुपर क्रांति है, अब वे लिखने पढ़ने के लिए किसी पर निर्भर नहीं हैं। मेरा एक नेत्रहीन सहकर्मी है, कोलंबिया से पीयचडी किया है, कभी कुछ विभाग का थीमपेपर आदि टाइप करना होता है तो कहता है क्या ईशदा, आप घंटों लगाएंगे, दीजिए मैं फटाफफट कर देता हूं। हमारे गांव में वह सूरदास कहलाता। मुझे जब कोई किसीसे कोई सहायता लेने को कहता तो मैं कह देता था कि अपाहिज हूं क्या? सीखने की प्रक्रिया निरंतर है। 12 साल पुरानी बात है। मैं हॉस्टल का वार्डन था। हॉस्टल की प्रवेश प्रक्रिया विवि में प्रवेश प्रक्रिया के बाद शुरू होती है। एक लड़का दोनों पैरों में जन्मजात फालिजग्रस्त, बैशाखियों पर टक-टक चलता हुआ ऑफिस में आया, बोला कि उसके लोकल गार्जियन गाजियाबाद में रहते हैं वह रोज नहीं आ-जा सकता। बलिया से 95.5% लेकर आया था, तब सीबीयससी का खैरात कारखाना नहीं शुरू हुआ था। मैंने केयरटेकर को कहा कमरे खाली रहकर अंडा देंगे क्या, एक गेट के पास का खाली कमरा खोल दो। तकनीकी अवैधताएं नैतिकता पर असर नहीं डालतीं, नियम मनुष्यों के लिए हैं, मनष्य नियम के लिए नहीं। उसका नाम दिमाग से उतर रहा है, वह 6 महीने ही रहा, भाभा रिसर्च इंस्टीट्यूट चला गया, तब से मैंने इस लोकोक्ति का इस्तेमाल बंद कर दिया। हमारी सामाजिक चेतना की संवेदना में कूंट-कूंट कर क्रूरता भरी है।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment