Saturday, March 3, 2018

लल्ला पुराण 195 (त्रिपुरा चुनाव)


माणिक सरकार अपने पूर्ववर्ती नृपेन भट्टाचार्य की तरह नितांत ईमानदार व्यक्ति हैं, लेकिन उनकी पार्टी वैचारिक दिवालिएपन की शिकार है, 32 साल में बंगाल में क्रांतिकारी चेतना को और क्रांतिकारी दिशा देने की बजाय कुंद किया। मानिक सरकार या इंद्रजीत गुप्त की निजी ईमानदारी का जनता क्या अचार बनाएगी? मुल्क की आज की दुर्दशा का दायित्व काफी हद तक यहां की संसदीय कम्युनिस्ट पार्टियों के अकर्म-कुकर्मों का है। हमारी आने वाली पीढ़ियां हमारी पीढ़ी पर थूकेंगी जैसे जर्मनों की मौजूदा पीढ़ियां अपने हिटलरवादी पूर्वजों के नामों पर थूकेंगी कि हमने एक ऐसे दंगेबाज को प्रधानमंत्री बनाया जो झूठ के अलावा कुछ नहीं बोलता जो अपनी शिक्षा-शादी के बारे में गलत हलफनामा देता है और ऐसे पट्टाधारी जज थे जो दिल्ली विश्वविद्यालय पर गजट पब्लिक करने पर रोक लगा देता है। एक और दंगेबाज, फर्जी एंकाउंटरबाज अपराधी को जो जज पेशी से छूट नहीं देता उसका ट्रांसफर हो जाता है, दूसरा भी छूट नहीं देता उसका इहलोक से उहलोक में ट्रांसफर होता है। 3 अन्य जजों से जज लोया ने अपनेऊपर बन रहे दबाव की बात शेयर किया था, उनमें से 2 की दुर्घटना (8वी मंजिल से गिरने और ट्रेन की बर्थ से गिरने से) जाहिर है तीसरा अब शायद ही बोले? कहीं कोई हंगामा नहीं हत्यारों की पूजा-अर्चना में कमी नहीं। ऐसे विवेकशून्य आवाम को कोई गुलाम बना सकता है, 2-4 हजार अंग्रेजों द्वारा हमें गुलाम बनाकर 200 साल लूटते रहे, रोटी के लिए 2 कौड़ी की वर्दी में बिकनेवाले हमारे बहादुर पूर्वजों और अंग्रेजों के तलवे चाटने वाले पट्टाधारी रजवाड़ों के बलबूते। मुल्क का एक तिहाई जीडीपी लेकर मोदी को पालने वाले धनपशु भाग गए। विजय माल्या आज भी राज्यसभा का भाजपा सदस्य है, न तो पार्टी से न ही राज्यसभा से निकाला गया। रेल समेत सारी परिसंपत्तिया औने-पौने दामों पर अपने प्रिय धनपशुओं को बांटे-बेचे जा रहा है। गोभक्ति के उंमाद में किसानों को तबाह कर रहा है। 2019 तक देश 50 साल पीछे पहुंच जा रहा है। नौकरियां पैदा करने की जगह जो है वह भी खाए जा रहा है। आईटी में लाखों खर्चकर इंजीनियर बनने वाला ओला चला रहा है। कहीं कोई हंगामा नहीं। रोम जल रहा है, भक्त कीर्तन गा रहा है, आवाम बासुरी बजा रहा है। औपनिवेशिक साम्राज्यवाद और नवउदारवादी वित्तीय साम्राज्यवाद में बस इतना फर्क है कि अब किसी लॉर्ड क्लाइव की जरूरत नहीं है, सिराजजुद्दौला भी मीर जाफर बन गए हैं, कभी मनमोहन के रूप में कभी मोदी के।

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