Dinesh Pratap Rao Dixit हम बालविवाह का सफल प्रतिरोध नहीं कर पाए तो अंडर प्रोटेस्ट, बिना शादी के कपड़े पहने किया। खिचड़ी पर बिना रिसियाए हुए छू दिए और मिठाई खाकर छोटे भाइयों और मित्रों के साथ उठकर बारात में चला गया। घराती-बराती में हंगामा मच गया कानाफूसी होने लगी, सबने सोचा ज्यादा रिसिआ गया। किसी ने कहा मोटरसाइकिल के लिए, किसीने कुछ। मुझसे कोई पूछ नहीं रहा था। जब मेरी समझ में आया कि लोग सोच रहे हैं किसी चीज के लिए या किसी बात पर नाराज हो गया हूं। मैंने कहा चलिए फिर से बैठ जाता हूं और अपनी उम्र के और अपने से छोटे बारातियों को लेकर फिर से मंडप में बैठा और कहा जब कहिएगा तब उठूंगा। मेरे बाबा में एक अच्छी बात थी कि वे दहेज न मांगते थे न जो मिला उसे ठुकराते थे। 2000 बरक्षा रखा गया था एवं शादी में घड़ी, साइकिल तथा 2 अंगूठियां और रेडिओ। सोना से मुझे कभी लगाव नहीं रहा सो घर पहुंचते ही एक बड़े भाई को दे दिया और एक दादी (अइया) को। घड़ी 15 दिन में खो गयी, साइकिल इलाहाबाद में तालाबंद पंचर साइकिल 1973 में खो गयी। शादी का फैसला मेरा नहीं था, निभाने का मेरा है।
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