Saturday, March 10, 2018

मार्क्सवाद 136 (वृहस्पति)

अतरिक्ष विज्ञान का ज्ञान शून्य होने के कारण कितना भेजे में बैठा, कह नहीं सकता, लेकिन आपने बहुत ही सुंदर, वैज्ञानिक ढंग से पेश किया है। "ढेरोॆ अनसुलझे सवालों के जवाब मिलना अभी बाकी है"। अंतिम सत्य की ही तरह कोई अंतिम ज्ञान नहीं होता कि आप किसी शिखर पर खड़े होकर नीचे ढलान देखकर आत्ममुग्ध हो लें कि हम ज्ञान के अंतिम शिखर पर पहुंच गए हैं। आगे अनंत घाटियां-चोटियां हैं। ज्ञान तथ्य नहीं एक निंतर, अनंत प्रक्रिया है। भौतिक अन्वेषणों की ही तरह, आत्मान्वेषण भी एक निरंतर प्रक्रिया है, जिनकी द्वंद्वात्मक एकता इतिहास की गाड़ी का ईंधन-पानी है। हर अगली पीढ़ी तेजतर होती है, पिछली पीढ़ियों की उपलब्धियों को सहेज-समेकित कर आगे बढ़ातीहै, पाषाणयुग से साइबर युग की यात्रा इसकी गवाह है। सारी महानताओं का अतीतान्वेषण भविष्य के विरुद्ध जानी-अनजानी साजिश है। इतिहास की गाड़ी में रिवर्स गीयर नहीं होता, छोटे-बड़े यू टर्नों के बावजूद, अंततः आगे ही बढ़ती है। इतिहास के पुराणीकरण के बादल के अंधेरे से लड़ने के लिए, वैज्ञानिकता के अननंत मशालों की जरूरत है।

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