देश भक्तों की इस सरकार की शिक्षा नीतियों एवं देशभक्त वीसियों तथा एबीवीपी और बजरंग दल जैसे देशभक्त गिरोहों की उत्पातों; वैदिक विज्ञानियों द्वारा धर्मांधता के प्रसार आदि घटनीओं से भविष्य की कल्पना भयावह है। मन प्राचीनकाल में पहुंच जाता है जब ब्राह्मणवादी वर्चस्व के लिए ज्ञान की जनतांंत्रिक संस्थानों और साहित्य का विनाश कर समाज को वर्णाश्रम के अंधकार की जड़ता में जकड़ दिया। स्त्री तथा बहुजन को शिक्षा से वंचित कर, गुरु: देवो भव मान्यता वाले गुरकुलों में भी अपने वारिसों को पीढ़ी-दर-पीढ़ी अपना ही कुज्ञान रटाते रहे। समाज जड़ता के गर्त में समाता रहा। भला हो मैकाले का जिसने बौद्धिक संसाधनों की सुलभता सार्वभौमिक कर दी, उसके निहित स्वार्थ जो भी हों।
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