Friday, March 30, 2018

ईश्वर विमर्श 50 (राम-मुहम्मद)

1937 का हिंदू महासभा के मिनट्स देखिए। ये ब्लॉग नहीं लेख हैं। सोमवार को 3 मूर्ति लाइब्रेरी जाऊंगा और आपको किताबों के नाम बताऊंगा। जिसमें सावर की टू नेसन थियरी है। सुमित सरकार की पुस्तक The History of Modern India में सांप्रदायिक आंदोलन पर एक चैप्टर है, जिसमें जिन्ना और सावरकर दोनों के बारे में है, वह किताब मेरी बेटी की बुक सेल्फ में है, शाम को पेज नंबर सहित बताऊंगा। 1937 के सावर के भाषण का जिक्र अनेकों किताबों में है। किसी भी आधुनिक इतिहास के विद्यार्थी से पता कर लीजिए। संघी-मुसंघी मौसेरे हैं। जिन्ना तो कभी अलीगढ़ गया नहीं। मैं तथ्य-तर्को के बिना कुछ नहीं लिखता। AR Desai, Social Background of Indian Nationalism and Rajani Palm Dutt, India Today (1940) भी देखें।

कहां मैंने किसे अपमानित किया, मैं तो वही कह रहा हूं जो वाल्मीकि और तुलसी ने कहा है। जो संदर्भ होगा वही कहूंगा। मैंने ऊपर लिखा है जब खुदा ही कल्पना है तो पैगंबर कहां से आएगा, जैसे गीता में एक पात्र अपने को खुदा घोषित करता है वैसे ही 7वीं शताब्दी में एक शख्स अपने को पैगंबर घोषित करता है, एक धनी विधवा से शादी कर उसके पैसे से जनाधार बनातान और खुद को पैगंबर घोषित कर देता है, बुढ़ापे में एक नाबालिग से शादी करता है। यह बहस निरर्थक लग रही है, इसलिए अब बंद करके 5 बजे तक एक लेख देना है उस पर काम करता हूं। किसी की भावनाएं आहत हुई हों तो माफी।

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