सही कह रहे हैं भीष्म को अपने अपराध की सजा उसी जीवन में मिल गयी। सबको अपने कृत्यों का फल इसी जीवन में मिलता है, दूसरा जीवन होता नहीं कुछ समझ पाते हैं, कुछ नहीं। उनके सबसे प्रिय पोते ने ही छल-कपट से उनकी हत्या कर दी। उसने कृष्ण के छल-कपट से अपने गुरु की भी हत्या कर दी, जिसकी अपराजेयता के गुरू ने एक आदिवासी धनुर्धर का अंगूठा काट लिया था। अपराजेय की छल-कपट से हत्या जिस समाज का अनुकरणीय कृत्य हो और हत्यारे अनुकरणीय चरित्र हों, वह समाज बौद्धिक जड़ता को अभिशप्त है।
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