Sunday, March 4, 2018

लल्ला पुराण 199 (शिक्षा और धर्मांधता)

इविवि के एक ग्रुप में शिक्षकों के धर्मांधता फैलाने के अशिक्षकीय हरकत की आलोचना में, एक शिक्षक ने कहा तब तो स्वाधीनता आंदोलन में शिकत करने वाले शिक्षक तथा निराला, दिनकर आदि कवि धर्मांधता फाला रहे थे, उस पर:

इन्हें फिर से पढ़िए, वह तोड़ती पत्थर; मानव जब जोर लगाता है..; लेखनी अब किसलिए विलंब; वह आता दो टूककलेजे को करता.... आदि कविताओं में कहां धर्मांधता दिख रही है? जिन शिक्षकों ने स्वाधीनता संग्राम में योगदान दिया वे शिक्षक थे, पढ़ते-लिखते थे, महज नौकरी नहीं करते थे। मैंने इन सभी कवियों को पढ़ा है उनमें विवेक और मानव संवेदनशीलता दिखती है, धर्मांधता नहीं। कोई शिक्षक वैज्ञानिक सोच के विरुद्ध सांप्रदायिक नफरत और अंधविश्वास फैलाए, उसे गंभीर आत्मचिंतन की जरूरत है। यह कश्बा-शहरों की बात नहीं है, दिल्ली विवि में भी ऐसे बहुत हैं। नौकरियां, गॉडफादरी के शौकीन प्रोफेसरों की जागीर है। यदि 20-25 फीसदी शिक्षक भी शिक्षक होने का महत्व समझ ले तो आधी क्रांति वैसे ही हो जाती। दुर्भाग्य से, ज्यादातर अभागे, निरीह जीव हैं, नौकरी करते हैं तथा 3-5। अपनी कमियों को छिपाने के लिए ऐसा दिखाते हैं जैसे किसी और ग्रह से आए हों। लेकिन हमारे बच्चे तेज हैं, वे जान जाते हैं कि नाटक कर रहा है। ऐसे शिक्षकों की छात्र दिल से कभी इज्जत नहीं करते। कुछ और भी जघन्य काम करते हैं, एक गिरोह पाल लेते हैं।

पुनश्च:

हो सकता है आप क्लास में तर्क-विवेक की बात करते हो? मैंने आप को इंगित करके नहीं कहा, धर्मांधता फैलाने वालों को कहा, आप की दाढ़ी में तिनका निकले तो कोई क्या कर सकता है? मेरा काम किसी को छोटा दिखाना नहीं, पढ़ाना है। दूसरों को छोटा दिखाकर बड़ा बनने की कोशिस वाला बौना दिखता है। सादर। विवेक का जीवन अंधविश्वासी, और फिर्कापरस्ती के जीवन से अधिक सुखद होता है। सादर।

पुन:पुनश्च:

शिक्षक की पूंजी छात्र होते हैं, लेकिन कृपा अपने विवेक और आत्मबल की होनी चाहिए, बजरंगबली की नहीं। चलिए आप कीवभावनाएं आहत हुई हों तो माफी। जिसके छात्र इज्जत करते हों वह निश्चित अच्छा शिक्षक होगा। एक शिक्षक को आस्था पर नहीं विवेक पर जोर देना चाहिए। सादर।

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