एक पोस्ट पर ऋगवेद विमर्श पर दो कमेंट्स का एकसाथ कॉपी-पेस्ट:
मैंने 1978 में गोविंद मिश्र (या पांडेय) का ऋगवेद का सुंदर पद्यात्मक अनुवाद पूरा पढ़ा, 1980 में कोई एक हफ्ते में लौटाने का वायदा कर ले गया, बहुत बार तकादा किया, लेकिन... आजकल वह एक विवि में विभागाध्यक्ष है। विकास के उस चरण में अपनी परिस्थितियों पर ऐसा चिंतन और reflection अप्रतिम है। दुबारा पढ़ने और उस पर लिखने (जब पढ़ा था तब लेखक होने काआत्मविश्वास नहीं था, सोचता था लेखक किसी और ग्रह का जीव होता था) का वक्त नहीं निकाल पाया। वेदों को दुनिया को सभी ज्ञान का श्रोत मानने वाले तथा उसे खारिज करने वाले दोनों भांति के लोग बिना भूमिका भी पढ़े समीक्षा लिखने वाले किस्म के हैं।
मित्र अभी कुछ और लिख रहा हूं।
वैसे भी 40 साल ऋग वेद पहले पढ़ते हुए आए विचारों को सही सही याद करना मुश्किल है। इस पर विस्तार से कभी लिखूंगा। राहुल सांकृत्यायन की गंगा से वोल्गा संग्रह में इस युग की कई ऐतिहासिक शोधपूर्ण कहानियां हैं। ऋगवैदिक आर्य सप्तसैंधव क्षेत्र में (संधु, पंजाब की पांच नदियां और सूख गई सरस्वती का क्षेत्र) जनों (कबीलों) रहते थेष अनार्य कबीलों का जिक्र भी मिलता है। पूरा ग्रंथ अष्टकों में (विभाजित हैं) सही सही कितने सूक्त, अष्टक. अध्याय हैं गूगल बाबा से मिल जाना चाहिए। ज्यादातर सूक्त देवताओं की प्रार्थना के रूप में हैं। हवनकुंड प्रार्थना के अलावा अड्डेबाजी की भी जगह होता था, देवताओं को घोड़े को छोड़कर किसी भी पशु की बलि दी जाती थी। अश्वमेध साल में एक बार इंद्र नेता)को समर्पित था। (शायद परिवहन और युद्ध में उपयोगिताके चलते) विष्णुलोक के किसी देवता का वर्णन नहीं है। प्राकृतिक देवताओं के अलावा सोमरस (शायद भांग) के दो अक्षर नाम के एक देवता थे। बचपन से मेरी रुचि कहानी में ज्यादा रही है, दसराज्ञ युद्ध की कहानी मोटा-मोटा याद है, उसके साल भर बाद 'बोल्गा से गंगा' में से भी यह कहानी पढ़ा तो याद मिली-जुली है। कबीले के नेता के बाद दूसरा सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति पुरोहित होता था। बाकी बाद में फिर कभी, बाकी तीनों वेद नहीं पढ़ा हूं और लगता नहीं अब पढ़ने का वक्त मिलेगा। कौटिल्य के समय तक चौथा वेद नहीं लिखाया था क्योंकि अर्थशास्त्र में राजकुमारों की शिक्षा केे विषयों में वार्ता (अर्थशास्त्र); अन्विक्षकी (दर्शनशास्त्र -- आध्यात्मिक तथा भौतिकवादी दोनों); दंडनीति (राजनीति शास्त्र) के क्रम में सबसे ऊपर त्रयि (तीन वेद) का जिक्र है। देवताओं में वैदिक देवताओं का ही जिक्र मिलता है, ब्रह्मा-विष्णु-महेश का नहीं। मौका निकाल कर फिर ऋगवेद पढ़ूंगा।
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