Saturday, January 21, 2017

क्षणिकाएं 62 (831-40)

831
2012 की एक पोस्ट पर इलाहाबाद के मेरे सीनियर वीपी संह जी ने कमेंट किया कि इश्क में भी इंक़िलाब, वह पोस्ट दिखा गई और कलम आवारा हो गया.
Virendra Pratap Singh
सही साबाशी दी है इश्क में इंकिलाब की
प्रेम ही है गाढ़ा-माटी इंक़िलाब के बुनियाद की
इंकिलाब नहीं है संसद का चुनाव
इंकिलाब है दुनिया बदलने का भाव
बदलाव नहीं महज मसला-ए-निज़ाम में
बल्कि ज़िंदगी के हर मुमकिन मुकाम में
आता है जब समाज में इंकिलाब
बदल जाता है आशिकी का मिज़ाज
होता नहीं कोई हुस्न के जलवे का पिजड़ा
न ही किसी धनुर्धर की तीरअंदाजी का जलवा
होती है बुनियाद विचारों की साझेधारी
हमराह-हममंजिल होती है आशिक जोड़ी
(ईमि:04.12.2016)
831
एक देश में एक राजा था बिल्कुल फकीर
एक भिखारी था उसी देश में बेहद अमीर
राजा करता था लखटकिया सूट में तकरीर
भिखारी मांगता था स्वाइप मशीन से भीख
राजा ने कहा अगर देश में लाना है खुशहाली
तो चाहिए मॉल कल्चर और कैशलेस इकॉनामी
मर रहा है वही नोटबंदी की पवित्र मार से
मर सकता था जो वैसे भी बे-दवा बुखार से
ऐसे लोग जो ज़िंदगी में उठ नहीं पाते
राष्ट्र के लिए त्याग कर नहीं पाते
रोजी-रोटी में ही जीवन खपा डालते
या बेरोजगारों की फौज खड़ी करते
मिटा देते हैं उनकी जीवन रेखा भगवान
नोटबंदी तो है महज एक माध्यम नादान
राजा की लफ्फाजी से हो गया भिखारी बोर
चढ़ महल की मीनार पर मचाने लगा शोर
चिल्लाकर गाने लगा राजा है फरेबी चोर
नौटंकी में दिया इसने मुझे स्वाइप मशीन
करके मेरी नुमाइश दिखाता सपने रंगीन
सेठों का कारिंदा है नहीं है ये फकीर
खींच रहा दिमागों में वह छल से लकीर
कहता हटाने को गरीबी हटाता है गरीब
बनाता है उनके लिए नोटबंदी का सलीब
(आज दूसरी बार कलम की आवारगी, ये तब कुछ ज्यादा आवारा हो जाता है जब इसके पास कोई गंभीर काम होता है.)
(ईमि:04.12.2016)
832
एक था अहंकारी राजा
डाला आवाम की संपत्ति पर भयंकर डाका
ऐश करते रहे सब हरामखोर थे जो उसके आका
मच गई प्रजा में त्राहि त्राहि घरों में पड़ने लगा फाका
मरने लगा आवाम हुआ न काला धन को बाल भी बांका
देश भक्ति के नाम पर शुरू हुआ मेहनतकशों का हांका

पेट की आग ने मुर्दों जान भरना शुरू किया
भक्तिभाव को बगावत में बदलना शुरू किया
हथियारबंद सैनिक भी परिजनों के दुख से दुखी हुआ
हथियारबंद मशीनों में चिंतनशक्ति का संचार हुआ
देख हलचल मशीनों में अंहकारी राजा सनक गया
विक्षिप्त हो मुल्क के आवाम पर पागल सा भड़क गया
भूखे-नंगों का बगावती जज्बात हो गया भक्ति भाव पर हावी
छीन लिया दरवान से राजा के गुप्तकोष की चावी
लूट लिया प्रजा ने महल से पीढ़ियों से लुटा अपना धन
राजा का सिर धरती पर गिरा मिट्टी में मिला अहंकारी मन
(यों ही)
(ईमि: 07.12.2016)
833
हम गुरुकुल संस्कृति के ज्ञानी हैं
शाष्टांग परंपरा के अभिमानी हैं
गुरुवाणी में ही छिपा परम ज्ञान
सवाल पूछना है गुरु अपमान
कालक्रम में समझना इतिहास
है गौरवशाली मिथकों का परिहास
भूत-ओ-भविष्य का सारा ज्ञान-विज्ञान
वैदिक पूर्वजों ने कर लिया था संधान
सवाल पूछना या करना गुरू से वाद-विवाद
है पूर्वजों के रटंत ज्ञान पर बज्र कुठाराठाराघात
(ईमिः 12.12.2016)
(यों ही)
835
उस वक्त की बात है जब लिखी गयी थी यह कविता
चहकती थी हर शाख और महकती थी हर दिशा
मौसम में थी जीने-खाने की सहजता
सीमित कमाई से भी था घरबार चलता
बिछाकर सरकार ने नोटबंदी का भयानक जाल
लूट लिया मौसम से खून-पशीने बना जान-माल
बंद कर दिया है दिशाओं ने महकना
और शाखों ने चहकना
छा गया है दिशाओं पर नोटबंदी का घटाटोप
सरकार लगा रही है नंगे-भीखों पर कालाबाजारी के आरोप
शाखाएं ऊंघ रही हैं एटीम की लंबी कतारों में
भूल गए हैं खग-मृग झूमना, फुदकना और चहकना
लेकिन ये दिशाएं महकना भूली नहीं हैं
शाखाओं के तेवर में चुप रहना नहीं है
फिर से मंहकेंगी दिशाएं और चहकेंगी शाखाएं
नोटबंदी के फरेब की टूटेंगी मृगमरीचिकाएं
(यों ही)
(ईमि: 20.12.2016)
836
मितरों मैं हूं चायवाला नरेंद्र दामोदर मोदी
सामासिक संस्कृति की कब्र हमने खोदी
देते हैं ऐसे-ऐसे दिलफेंक बयान
फेल हो जाते खुदाओं के फरमान
सूली पर चढ़ा देना मुझको ताजशाही के सौ दिन बाद
 किया न अगर पंद्रह-पंद्रह पेटी से हर घर को आबाद
 मिली न पेटी किसी को हजार दिन बाद
समझना न इससे मुझे महज जुमलेबाज
लटका नहीं सकते वैसे तुम मुझे शूली पे
रहता हूं मैं ज़ेड-प्लस की किलाबंदी में
 ले आता मैं विदेश से अपार काला धन
विपक्ष बन गया मगर रास्ते की अड़चन
 करता जब तक मुल्क काले धन से आबाद
राष्ट्रवाद पर लगा गुर्राने नापाक आतंकवाद
 काले धन पर पलते हैं आतंकवादी और नक्सल
 नोटबंदी से ठिकाने लाऊंगा इनकी अकल
मितरों अद्वितीय है राष्ट्र के लिए यह आत्मबलिदान
 बैंकों की कतारों में दे रहे लोग देशभक्ति का इम्तहान
 नमकहलाली के उसूलों से भटका
विदेशी कालेधन का वादा
अडानी की जहाज में चलने का है कुछ अलग ही फायदा
भूल जाइए मितरों विदेशी काले-पीले धन की बात
पैदा कीजिए काले धन केराष्ट्रवादी स्वदेशी जज्बात
बहुत से काले बाजारिए भेष बदल चीथड़ों में घूमते हैं
रिक्शा या ऑटो चलाकर भोली जनता को लूटते हैं
इसीलिए मितरों मैंने फेंका नोटबंदी का अचूक जाल
भूखे-नंगे ही नहीं मध्यवर्गीय कालाबाजारियों का भी काल
 नोटबंदी ने लगा दिया कालाबाजारियों को लंबी लंबी
कतारों में खंघाल कर काले धन की पाई-पाई रख दिया
बैंक लॉकरों में मितरों था देश में
 बैंकों में नगदी का संकट विकास में बाधा
कुछ देशभक्त पूरा न कर सके बैंकों से कर्ज लौटाने वादा
टल गया फिलहाल देश से बैंकों के दिवालिएपन का संकट
 भारतमाता की खातिर झेलिए थोड़ा और भुखमरी का कष्ट
किया था पंद्रह पेटी विदेशी काले धन का वायदा
मिलेगा हर किसी को देशी काले धन का फायदा
विदेशी काले धन के लिए रखा था सौ दिन की मियाद
 देशी काले धन का वायदा महज पचास दिन बाद
शूली पर चढ़ाने की तब की थी गुजारिश
ज़िंदा जलाने की करता हूं अबकी सिफारिश
 मितरों देख रहा हूं नहीं कमती बैंकों की कतार
 देशभक्ति की परीक्षा देनी पड़ती बार बार
 पांच दिन बाद हो जाएगी पूरी पचास दिन की मियाद
 करूंगा का मुल्क से तब कोई नई राष्ट्रवादी फरियाद
इस बार भी आप ज़िंदा जलाने का अपना फर्ज
न निभा पाएंगे जबतक है सिर पर ताज़
हम ज़ेड-प्लस से बाहर न आएंगे पांच साल
नाकाफी है मिटाने को 70 साल की देशद्रोही दुर्गंध
 अगले पांच साल में मितरों फैला दूंगा राष्ट्रवादी चंदन की सुगंध
मांगता हूं पिछले पांच सालों की भूलचूक की राष्ट्रवादी मॉफी
अगले पांच सालों में लगाऊंगा चिलम में हिंदू राष्ट्र की साफी
(यूं ही) (ईमि : 24.12.2016)
837
ऐसा ही फरेबी एक शख्स था स्वयंभू भगवान
कहते किसी द्वापर युग में
आज भी मानते भगवान उसको इस कलियुग में
था शेर सा खूंखार लोमड़ी सा चालाक
वाक्पटुता से कर देता था लोगों को अवाक
था उसके पास एक अद्वितीय क्षेपक अस्त्र
दूर से ही कर सकता था दुश्मन को त्रस्त
नाम रखा था उसका नरसंहारी सुदर्शन चक्र

पला-बढ़ा वह एक पशुपालक परिवार में
बचपन में करता था गाय बृंदाबन में
चतुराई से खेल खेल-चुटकुलों में
सरमौर बन जाता साथी चरवाहों में
चुराता था दही लगाता था औरों का नाम
कहावत है बद अच्छा बुरा है बदनाम
जैसे जैसे बड़ा होता गया
लड़कियों का चहेता बनता गया
करता था उनके कपड़े चुराने की क्रीड़ा
रचता था उनके साथ रासलीला
सहता था परनारी गमन के आरोप की पीड़ा
अदालत ने शिकायतियों पर लगाया प्रत्यारोप
घोषित किया उसे सब आरोपों से निर्दोष
जवानी तक पूरे गांव का हो गया वह बेत़ाज बादशाह
ख़ाहिश मगर थी उसकी बनने की चक्रवर्ती सम्राट

इसके लिए उसने दूरगामी योजना बनाया
एक छोटे से रजवाड़े को कर्मभूमि बनाया
पहुचते दिखाया कुछ चमत्कारी कारनामें
सर्वज्ञ बन बैठ गया परदेश के चिलमन में
चली फिर उसने एक अचूक चाल
बिछाया राजकुल में फूट का जाल
कराने गया बनकर बिचौलिया दावेदारों में समझौता
दिलाया दोनों से रणभूमि में मिलने का आपसी न्योता
बनाया अपना भक्त था जो सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर
साबित किया था मछली की आंख भेदकर
जंगखोरी जमकर किया गुणगान
युद्ध कर्म को बताया दैविक विधान
कहा खून-खराबे में फायदा ही फायदा है
जीतने पर राज हारने पर स्वर्ग बदा है
करने लगा धनुर्धर युद्ध के प्रलयंकारी परिणामों की बात
दिखाने लगा सगे-संबंधियों से मोह-माया ओ नैतिक जज्बात
देखा स्वघोषित प्रभु ने जब धनुर्धर की भावना युद्ध-विरक्ति की
दिखलाया अपना विराट रूप और माया जादुई शक्ति की
उंगलिओं पर घूमने लगा महान सुदर्शन चक्र
देखा धनुर्धर को करके आंखें थोड़ा वक्र
कहा मैं ही हूं भगवान श्रृष्टि रचने वाला
दुनिया को वर्णाश्रम की सौगात देने वाला
हुआ दोनों पक्षों में खून खराबा घमासान
हुंकार-ललकारों से गूंजा साराआसमान
गिरने लगे धरती पर बड़े-बड़े महारथी ऐसे
आंधी में पेड़ों से से फल गिरते हों जैसे
खुशी से नाचने लगे आसमान में चील्ह-बाज
मानव-मांस है जिनके भोजनों में सरताज
चंद दिनों में धरती बन गई सुनसान श्मसान
हो गई कोख उसकी जैसे एक टापू वीरान

प्रलय के बाद शांत था धरती-आसमान
पूरा किया उसने चक्रवर्ती का अरमान
बनाया राजधानी समृद्ध द्वारका नगरी में
करके विवाह एक कुलीन राजकुमारी से
स्थापित किया उसने विशाल यदुबंशी साम्राज्य
लोगों की भक्तिभाव से करता रहा एकक्षत्र राज्य
लेकिन है प्रकृति का एक ऐतिहासिक नियम
टूटता है लोगों का कभी-न-कभी भक्ति से भ्रम
करता रहा वह दिमागों पर तब तलक राज
खुला नहीं जब तक उसकी खुदाई का राज़
सिखाया था जो औरों को कुनबाई रक्तपात
यदुवंशियों ने भी कर लिया आत्मसात
कहावत है मियां के सिर मियां का लात
छिड़ गया भयानक गृहयुद्ध द्वारिका में
छिप गए खुदा घनी राज वाटिका में
जैसे ही हटा खुदा से किलेबंदी का घेरा
बेनकाब हो गया उसकी खुदाई का चेहरा
एक बहेलिए ने उसे मार गिराया
चक्रसुदर्शन किसी काम न आया
(अधूरी. क्या भाई बोधिसत्व जी आपने खुदाई पर ऐसा उकसाया कि डेडलाइन की नैतिकता भूल कर, कलम आवारा हो गया, सठियाए लोगों का कलम भी उन्ही जैसी आवारगी करता है.)
(ईमि: 24.12.2016)
838
जनता देशद्रोही हो गयी है
नहीं दे रही है सबूत देशभक्ति का
सहकर नोटबंदी की घातक मार
जनता खो चुकी है विश्वास सरकार का
ब्रेख्ट ने लिखा था हिटलर की जर्मनी में
सरकार द्वारा नई जनता चुनने की बात
यह सरकार चुनेगी नई जनता
जो हाफ नहीं अब फुलपैंट पहनकर आएगी
नोटबंदी के विरोधियों का खोज खोज पता लगाएगी
और देशद्रोहियों को एक एक कर
देश भक्ति का पाठ पढ़ाएगी
नमस्ते सदा वत्सले का गीत गवाएगी
जो करेगा देशभक्ति से इंकार
पाकिस्तान भेज देगी यह सरकार
सरकार आसमान से उतरी थी जब
नवाब शरीफ के घर
लेने उनकी मां का आशीस
नवाया था भक्ति भाव से शीष
शरीफ ने पहनाया थो मोदी को जब फूलो का हार
दोनों ने महसूसा
अपने अपने देशद्रोहियों को निपटाने की दरकार
किया दोनों ने देशद्रोहियो की अदलाबदली का करार
हिंदुस्तानी देशद्रोही डूबेगा अरब सागर में
पाकिस्तानी देशद्रोही हिंद महासागर में
मिलेंगे दोनों वहां
हिंद महासागर मिलता है अरब सागर जहां
दोनों मिलकर साझा रणनीति बनाएंगे
जनता चुनने वाली सरकारों को
समुद्र में डुबाएंगे
ख़ाक में मिलाएंगे सरकार द्वारा जनता चुनने के रिवाज़
( यूं ही, सुबह सुबह कलम की आवारगी)
(ईमि: 29.12.2016)
839
मुबारक हो नया साल
देश में पड़ने वाला है भयानक अकाल
नोटबंदी की भीषण प्रलय का कमाल
बर्बाद हो रहे गरीब अमीर हो रहे मालामाल
नहीं हो रहा कहीं मगर कोई हाहाकार
नाइंसाफी की सहिष्णुता है यहां अपरंपार
काला धन है देश का सात समुंदर पार
बदले में उजाड़ रही नोटबंदी गरीबों का घरबार
लोगों की लाचारी को समर्थन बताती यह सरकार
झूठ और मक्कारी की माया है अपार
(ईमि: 01.01.2017)
840
गरज उठे उठे सारे राष्ट्रवादी चैनल
दे दिया आयकर विभाग पक्की सनद
नहीं खाई कभी बंदानवाज ने कोई रिश्वत
सहारा ने किया था एक गरीब सीयम की मदद
देने लगे जब कोई जवाब बिन पूछे सवाल
दाल में काला नहीं काली है पूरा दाल
अब किसी आयकर अधिकारी पर
नहीं पड़ेगी सीबीआई की नज़र
करके धन पशुओं से घूसखूरी
भरते रहें अपनी तिजोरी
मगर एक बात साफ है
भक्तों का हजार खून माफ है

(ईमिः 05.01.2017)

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