जनहस्तक्षेप
फासीवादी मंसूबों के खिलाफ
अभियान
साथियो,
मोदी
सरकार के शुरुआती
दो बरसों में
‘गौरक्षा’ और ‘राष्ट्रवाद’
की धूम रही।
मगर अब यह
शोरशराबा कुछ कमजोर
पड़ गया लगता
है। सरकार अब
अपनी नाकामियों को
छिपाने के लिये
‘जबर्दस्त सनसनी’ का सहारा
ले रही है।
लेकिन इन सब
की आड़ में
जो कुछ चल
रहा है उसे
देश का कोई
भी जिम्मेदार नागरिक
नजरंदाज नहीं कर
सकता।
पिछले
साल 29 सितंबर को मोदी
सरकार ने दावा
किया कि उसने
पाकिस्तान के अंदर
घुस कर आतंकवादियों
के खिलाफ ‘सर्जिकल’
हमला किया है।
यह घोषणा वैसे
समय में की
गयी जब कश्मीर
नागरिक अशांति के हाल
के बरसों के
सबसे लंबे दौर
से गुजर रहा
था। जिन पैलेट
गनों के घातक
नहीं होने का
दावा किया गया
था उनसे लगभग
100 लोगों की जानें
ली जा चुकी
थीं। पंद्रह हजार
से ज्यादा लोग
घायल हो चुके
थे और कइयों
की आंखों की
रोशनी हमेशा के
लिये जा चुकी
थी। सुरक्षा बल
छोटे-छोटे बच्चों
और बच्चियों को
भी आतंकवादी करार
देकर उन्हें अपने
हथियारों का निशाना
बना रहे थे।
सिर्फ
एक ‘सर्जिकल’ हमले
ने कश्मीर को
जनता के बीच
चर्चा से बाहर
कर दिया। मीडिया
ने इसके समर्थन
में राष्ट्रीय स्तर
पर उन्माद फैलाना
शुरू कर दिया।
समूचे विपक्ष ने
भी अपनी ‘राष्ट्रवादी
विश्वसनीयता’ की पुष्टि
के लिये इस
‘सर्जिकल’ हमले को
बिना शर्त समर्थन
दिया।
इसी
बीच ओडिशा के
मलकानगिरी जिले में
24 निहत्थे माओवादी नेताओं को
ढेर कर दिया
गया। भोपाल में
आठ कथित सिमी
कार्यकर्ता मुस्लिम नौजवानों को
फर्जी मुठभेड़ में
मार डाला गया।
‘मुठभेड़’ के समय
इनमें से किसी
के पास कोई
हथियार नहीं था।
सरकार की तरफ
से यह हास्यास्पद
बयान दिया गया
कि वे सशस्त्र
पहरेदारों के खिलाफ
भोजन की प्लेटों
को हथियार के
तौर पर इस्तेमाल
करते हुए जेल
से निकल भागे
थे। इन नौजवानों
के खिलाफ अदालत
में कोई आरोप
साबित नहीं हुआ
था मगर मध्य
प्रदेश की भारतीय
जनता पार्टी सरकार
‘आतंकवादियों को उनकी
नियति तक पहुंचाने’
वाले अपने ‘वीर
पुलिसकर्मियों’ की पीठ
थपथपाने से नहीं
चूकी। इस जघन्य
सरकारी अपराध की चारों
ओर निंदा हो
रही थी कि
अचानक ‘नोटबंदी’ का सनसनीखेज
शगूफा छेड़ दिया
गया। बैंकों के
सामने लंबी कतारों
में खड़े रहना
राष्ट्रभक्ति की निशानी
बन गया। इस
तमाशे का विरोध
करने को भ्रष्ट
और राष्ट्रद्रोही होने
का प्रमाण बना
दिया गया।
इन
सब के बीच
सरकार ने छात्रों,
शिक्षकों, मजदूरों, किसानों, मध्यवर्गीय
बेरोजगार युवाओं और समाज
के अन्य तबकों
के नागरिक अधिकारों
का हनन जारी
रखा है। यह
सब एक सुनियोजित
योजना के तहत
विकेन्द्रित ढंग से
किया जा रहा
है ताकि इस
फासीवादी रुझान का खतरा
सामने नजर नहीं
आये।
भारतीय
समाज, अर्थव्यवस्था और
राजनीति के गंभीर
संकट पर परदा
डालने के लिये
सनसनी का सहारा
लिया जा रहा
है। अपनी चैतरफा
नाकामियों की आलोचना
से बचने के
लिये सरकार नागरिक
अधिकारों का खुल्लमखुल्ला
उल्लंघन कर रही
है। वक्त आ
गया है कि
देश की जनता
को बढ़ते फासीवादी
रुझान के खतरे
से आगाह किया
जाये ताकि इसके
खिलाफ जन प्रतिरोध
की जमीन तैयार
की जा सके।
जनहस्तक्षेप
ने इस मकसद
को ध्यान में
रखते हुए एक
आम सभा का
आयोजन किया है।
आपसे अनुरोध है
कि इसमें हिस्सा
लेकर इसे सफल
बनाने में अपना
बहुमूल्य योगदान करें।
कार्यक्रम
विषयः सांवैधानिक अधिकारों पर हमला: उभरता फासीवादी खतरा
स्थानः गांधी शांति
प्रतिष्ठान, दीनदयाल उपाध्याय मार्ग,
नयी दिल्ली (आईटीओ
मेट्रो स्टेशन के नजदीक)
तारीखः 21 जनवरी, 2017 (शनिवार)
समयः शाम 0500 बजे से
वक्ताः प्रो0 इम्तियाज अहमद
(जेएनयू से अवकाशप्राप्त
प्रोफेसर), प्रो0 नंदिनी सुंदर
(दिल्ली विश्वविद्यालय), कोलिन गोंजालवेज (जानेमाने
मानवाधिकार कार्यकर्ता और अधिवक्ता),
एनडी पंचोली (पीपुल्स
यूनियन फार सिविल
लिबर्टीज) तथा डॉ. अपर्णा (इंडियन फेडरेशन आफ
ट्रेड यूनियंस)
निवेदक
ईश
मिश्र
संयोजक, जनहस्तक्षेप
मोबाइलः 9811146846
विकास
वाजपेयी
सहसंयोजक, जनहस्तक्षेप
मोबाइलः9810275314
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