कॉमरेड जगदीश्वर जी, इतने निराश न हों. मौजूदा कम्युनिस्ट पार्टियां सूखा कुआं भले हो गई हों लेकिन पानी की संभावनाएं खत्म नहीं हुई हैं. किसी भी संकट के अवसर पर हजारों लोग जो सड़कों पर निकल आते हैं उनमें ज्यादातर मार्क्सवाद/समाजवाद की विचारधारा वाले लोग होते हैं. बहुत दिन हुआ अरुण माहेश्वरी जी की किताब की समीक्षा लिखने के पहले या लिबरेशन की कांग्रेस के बाद फेसबुक पर, 'इंटरनेसनल प्रोलेटेरियट' ग्रुप पर समाजवाद के संकट पर कुछ अमेरिकी कॉमरेडों (लेनिन की परिभाषा में अकम्युनिस्ट - निर्दल) से विमर्श पर एक लंबा कमेंट (2000 शब्दों के आस-पास) लिखा था, सोचा था कभी उसको इस मुद्दे पर व्यापक विमर्श के लिए ड्राफ्ट में तब्दील करूंगा, लेकिन बौद्धिक अनुशासनहीनता और आवारगी में ऐसा कर न सका, ब्लॉग में खोजूंगा. आप (अब तुम की जगहआप लिख दिया तो चलने दो) अरुण जी, मनमोहन शुहेल भाई आदि की ही तरह बहुत से गंभीर और अनुशासित लोग हैं जो समाजवाद के सैद्धांतिक संकट को लेकर बेचैन हैं. पूंजीवादी देशों में भी बहुत से ऐसे लोग हैं. सभी कम्यनिस्ट पार्टियों के जनसंगठनों, खासकर छात्र संगठनों में, बहुत से ऐसे लोग हैं जो इस संकट से बेचैन हैं, जो विकल्प के अभाव में इन दलों में हैं.अरुण जी जैसे बहुत लोगों को संगठन अनुभव और क्षमता है. मैंने अरुण जी की पुस्तक की समीक्षा में कई बातें रेखांकित की थी. कम्युनिस्ट पार्टी अन्य पार्टियों से इस मामले में अलग होती हैं कि वे सिद्धांत पर जोर देती हैं(कम-से-कम सिद्धांततः). हम लोग इस संकट पर एक लंबा विमर्श शुरू कर नए सिरे से, मार्क्सवादी सिद्धांतो पर नए संगठन की शुरुआत कर सकते हैं. बाकी समाजवाद पर एक लेख के बाद. शुरुआत सोसल मीडिया से की जा सकती है. संकट का प्रमुख कारण इन पार्टियों की मार्क्सवाद की जगह स्टालिनवादी प्रवृत्ति है जिसे अरुण जी ने अपनी पुस्तक में अच्छी तरह रेखांकित किया है. आप दोनों पहल में अति सक्षम हैं. शुरुआत विश्व स्तर पर संकट के कारणों से करनी पड़ेगी. ऐसा मुझे लगता है.
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