Atul Katiyar ऐसा नहीं है कि वामपंथी हर विरोधी को संघी बोलते हैं. अस्मितावादी महज अस्मिता की राजनीति करते हैं, संघर्ष नहीं, दलित उत्पीड़न समेत सभी उत्पीड़न के के खिलाफ संघर्ष मार्क्सवादी ही करते हैं. दिलीप मंडल और उनके चेले उसी तरह वामपंथियों को गरियाते हैं जैसे संघी, वौसी ही भाषा में.जन्म के आधार पर व्यक्तित्व का मूल्यांकन ब्रह्मणवाद का मूल मंत्र है जो भी ऐसा करतान है ब्राह्मणवाद के पूरक की भूमिका निभाता है, इसीलिए वह नवब्राह्मणवादी है. जबकि कम-से-कम उप्र में दलित उत्पीड़न सवर्ण नहीं, यादव करते हैं. लगता है कि संघियों और ओबीसी के संघी मानसिकता के लोगों की दुश्मनी ब्राह्मणवाद और क़रपोरेटवाद से नहीं, वामपंथियों से है, प्रकारांतर से वे जनवादी आंदोलनों का नुक्सान कर संघियों के कारिंदों का काम करते हैं. लेफ्ट को गाली देने के पहले थोड़ा इतिहास पढ़ लें. अस्मिता की राजनीति की सीमाएं हैं जो अंततः रामविलास और राम अठावले के रास्ते जाती है. विनय कटियार और मोदी तथा नीतीश जैसों की तार्किक परिणति संघ की गोद में बैठना है.
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