बिल्कुल सही कह रहे हैं क्रांति करना 4 लोगों द्वारा आलू खरीदने जैसा नहीं है. सामाजिक चेतना के जनवादीकरण की लंबी प्रक्रिया से ही वर्गचेतना बनेगी. इसीलिए तो एक व्यापक एकता की बात हो रही है, सामाजिक और आर्थिक एकता की. क्रांति आलू खरीदने जैसा होता तो फर्स्ट इंटरनेसनल के कम्युनिस्ट और अराजकतावादी 150 साल पहले कर चुके होते. लेकिन इतिहास के गतिविज्ञान के अपने नियम हैं. फरवरी (मार्च) 1917 की क्रांति के बाद बॉलसेविकव नेताओं को भूमिगत होना पड़ा था किसी ने तब कल्पना नहीं किया था कि अगले 10 महीने में ऐसे 10 दिन आंएगे जिससे दुनिया हिल उठेगी. क्रांति के लिए जरूरी है कि स्वघोषित क्रांतिकारी ताकतें पार्टी लाइन की भक्तिभाव पर पुनर्विचार करें और उत्पादन के अनौपचारिककरण के परिदृश्य में मजदूरों को संगठित करने की वैकल्पिक विधाएं विकसित करें. जेयनयू आंदोलन में जो हजारों लोग पूरी प्रतिबद्धता से जुड़े, उसमें से 90% दलछुट या निर्दल थे, इनकी भूमिकाओं को संगठित करने की जरूरत है. सीपीयम की कांग्रेस में आत्ममंथन या आत्मालोचना की बजाय निष्क्रिय सदस्यों से छुटकारा पाने का प्रस्ताव पारित हुआ इस पर विचार के बिना कि अतिसक्रिय लोग निष्क्रिय कैसे हो गए.
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