Shivshanker Dwivedi "मिश्र जी!'बात कुछ हजम नहीं हुयी,आप यदी कहते कि वेद पुराण स्मृति ग्रन्थ रामायण महाभारत आदि तो गोरगपुर की गीताप्रेस में छपे थे तो कुछ तार्किक लगता।" आपका हास्यबोध भी पौराणिक ही लगता है. पुरातात्विक, भाषाशास्त्रीय तथा ऐतिहासिक प्रमाणों से साबित हो चुका है कि वैदिक ज्ञान परमपरा त्रुति ज्ञान परंपरा थी लगभग 7वीं शताब्दी ईशापूर्व वैदिक आर्यों के वंशजों नेंलिपि ज्ञान हासिल किया. यह काल ब्राह्मणवादी कर्मकांड के विरुद्ध गौतम बुद्ध द्वारा वैकल्पिक मत के प्रचार के आसपास का काल है. वैदिक ऋचाएं बाद में संकलित की गयीं. रामायण, महाभारत का रचनाकाल निश्चित रूप से पहली शताब्दी ईशापूर्व के बाद का है, कम-से-कम मौर्यकाल के बाद का तो है ही. शासनशिल्प की कालजयी कृति, 'अर्थशास्त्र' के रचयिता कौटिल्य बहुत ही व्यवस्थित लेखक थे. वे किसी विषय पर अपने पूर्ववर्ती और समाकालीन सभी धाराओं के विचारों का उल्लेख करते हैं उसके बाद लिखते हैं, नेस्ति कौटिल्य. उन विचारों के विश्लेषण के बाद अपनी राय देते हैं और लिखते हैं, इति कौटिल्य. यदि महाभारत या रामायण उसके पहले की कृतियां होतीं, तो कौटिल्य उनका जिक्र जरूर करते. महाभारत का शांति पर्व तो लगभग पूरा-का-पूरा शासनशिल्प और राजधर्म-अपद्धर्म पर है, यदि महाभारत कौटिल्य (चौथी-तीसरी शताब्दी ईशा पूर्व) के समय के पहले लिखा गया होता तो वे उसका जिक्र जरूर करते. महाभारत-रामायण अंतिम मौर्य सम्राट की धोखे से हत्याकर सत्ता हथियाने वाले पुष्यमित्र सुंग द्वारा शुरू हिंसक, बौद्धविरोधी, ब्राह्मणवादी अभियान की बौद्धिक कड़ियां हैं. हमलोगों की बचपन से अधोगामी इतिहासबोध की आदत है जो शिखर के गर्त की उल्टी यात्रा करता है. हम किसी भी पौराणिक मिथकीय घटना, रचना या कपोल कल्पना को लाखों साल पहले स्थापित कर देते हैं, कभी-कभी तो पाषाणयुग के पहले. वर्तमान से हताश, प्राचीनता में सारी महानताएं ढूढ़ने वाले, दर-असल वर्तमान की समस्याओं से विषयांतर के माध्यम से ध्यान विचलित करते हैं और जाने-अनजाने भविष्य के विरुद्ध शाज़िस. ऐसे लोगों को जानना चाहिए कि इतिहास की गाड़ी में बैक गीयर नहीं होता. यू टर्न हो सकता है, कभी कभी. और यह कि हर अगली पीढ़ी तेजतर होती है. इन्ही कारकों से मानव इतिहास पाषाणयुग से साइबर युग तक पहुंचा है. अधोगामी इतिहासबोध खतरनाक होता है. सादर.
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