पहली बात तो वेदव्यास के महाभारत में गीता आठवीं शताब्दी के बाद का प्रक्षेपण है और कमजोर हो रहे वर्णाश्रम की पुनर्स्थापना का प्रयास. महाभारत भी हर हाल में मौर्यकाल के बाद का ग्रंथ है क्योंकि 4थी-3री शताब्दी पूर्व रचित शासनशिल्प पर कौटिल्य की कालजयी कृति अर्थशास्त्र में इसका वर्णन नहीं है. कौटिल्य तब तक उपलब्ध शासनशिल्प पर सभी विचारों का उद्धरण देने के बाद ही अपने विचार रखते हैं. ब्रह्मा-विष्णु-महेश भी तबतक नदारत थे. महाभारत के शांति पर्व में वर्णित और मनुस्मृति में वर्णित शासनशिल्प लगभग शब्दसः एक ही है. किसने किससे कॉपी पेस्ट किया नहीं कहा जा सकता. श्रुति परंपरा का ध्यान रखते हुए हमलोग किसी ग्रंथ को पढ़े बिना फैसलाकुन राय दे देते हैं. अर्थशास्त्र में कंस और कृष्ण को दानवों की कोटि में एक साथ रखा गया है. कौटिल्य के ही समकालीन मेगस्थनीज कृष्ण को सूरसेन (मथुरा क्षेत्र) का एक लिजेंड्री नायक बनाते हैं. इसका मतलब हुआ कि कौटिल्यकाल तक कृष्ण एक अनार्य (दानव) नायक माने जाते थे. कृष्ण की आराधना की परंपरा चैतन्य महाप्रभु ने शुरू किया.
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