Friday, January 13, 2017

ईश्वर मिमर्श 42

भगवान इतना गया बीता और कमजोर है कि उसे गाली-गलौच करने वाले भक्तों की मदद की जरूरत पड़ती है. यहां किसी भगवान को नहीं, एक ब्राह्मणवादी मिथकीय पुस्तक की समीक्षा है उसमें जो लिखा है उसी आधार पर. लेकिन भक्त को पंजीरी खाकर भजन करने और गाली-गलौच के अलावा कुछ आता ही नहीं. किस धर्म को गाली दी गई है? ब्राह्मणवाद धर्म नहीं एक अधोगामी विचारधारा है जो समाज को जन्म की जीवनवैज्ञानिक दुर्घना के आधार पर ऊंच-नीच की कोटियों में बांटता है. नास्तिक भगवान को क्यों गाली देगा? जिस चीज का अस्तित्व ही नहीं उस नाचीज को गाली देकर अपना समय क्यों कोई बर्बाद करेगा. थोड़ा पढ़िए लिखिए और गीता पढ़िए और भक्तिभाव की बजाय पाठक भाव से पढ़िए तो पांएगे कि यह पुस्तक कितनी फरेबी है. शुभकामना. भाषा की तमीज पढ़ने-बढ़ने का अनिवार्य अंग है वरना लोग पीयचडी करके भी जाहिल रह जाते हैं.

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