लड़ता हूं
क्योंकि बिना लड़े मौत के सिवा कुछ नहीं मिलता
निराश होता हूं जब भी हारता हूं
हताश नहीं होता
जानता हूं
दुश्मन बहुत ताकतवर है
धन-दौलत पालतू राज्यमशीनरी
और बहुत से धनपशु हैं उसके पास
लेकिन जानता हूं जागेगा ही एक दिन
जनविहीन इस जनतंत्र का आवाम
छाएगा सामाजिक चेतना पर जनवादी जज्बात
और बदलेगा संख्याबल को जनबल में
होगा तब धनपशुओं का सत्यानाश
वैसे भी
लड़ना ही है क्रांतिकारी को दमन के खिलाफ
याद आती है भगत सिंद की बात
लड़ता है क्रांतिकारी
पीड़ित-प्रताड़ित के लिए
क्योंकि उसे लड़ना और लड़ते ही रहना है
शेष है जब तक इंसान द्वारा शोषण इंसान का
और प्रकोप भगवान का
(ईमि: 12.01.2017)
बस यूं ही कलम आवारगी पर उतर आया)
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