Sunday, January 8, 2017

बाजार समाज

पैदा हुए हम मेहनतकश भी एक-एक अदद इंसान
हालात ने बना दिया बाजार का बिकाऊ सामान
आता है बाजार में धनपशु सिक्कों की थैली के साथ
लेकर सिक्कों से सिक्के कमाने के तिजारती अरमान
शुरू हुआ दुनिया में जब ज़र का नया निजाम
हो गया मेहनतकश श्रम के साधनों से आज़ाद
ऐडम स्मिथ था निजाम-ए-जर का एक पुजारी
कहा बाजार है समाज और हर शख्स व्यापारी
नहीं है जिसके पास माल एक भी फूटी कौड़ी का
आज़ाद है करने को सौदा वह अपनी चमड़ी का
खरीदता है धनपशु मशीन और कच्चा माल
नई शक्ल देता है जिसे श्रम-शक्ति का कमाल
थैलीशाह का मकसद है होना मुनाफे से मालामाल
न्यूटन का नियम है बदलता नहीं कुछ अपने आप
कच्चे माल को निखारता श्रम शक्ति का प्रताप
बेचकर श्रमशक्ति हो जाता श्रमिक पराधीन
मेहनत का फल उसके धनपशु के आधीन
विरक्ति हो जाती उसे अपनी मेहनत के फल से
धीरे धीरे अपनी मेहनत से, समाज से, अपनेआप से
निजाम-ए-जर ने बना दिया इंसान को मशीन
शास्त्रों से दिलाया हालात की इंशाफी का यकीन
पैसों की टाल लगाता रहा परजीवी सरमाएदार
उत्पादन की प्रक्रिया का अनुपस्थित किरदार
कच्चे माल को मूल्यवान बनाता जो कामगर
मिलती नहीं रोटी उसके बच्चों को पेट भर
बढ़ेगी भूख पेट की तो होगी छटपटाहट
धनपशुओं को सुनाई देगी विनाश की आहट
समझेगा मेहनतकश जब धनपशुओं की फरेबी चाल
बन हरावल दस्ता काट डालेगा लूट-खसोट के जाल
धनपशुओं को भी रहेगा आजादी का अधिकार
समता के सिद्धांत को ग़र करें वे स्वीकार
नामुमकिन होगा किसी के श्रम पर गैर का अधिकार
बनेगा समता के सुख की बुनियाद पर एक अद्भुत संसार
(मैं बार बार कलम को समझाता हूं आवारगी कर तो कायदे की, पैंफलेट लिखना हो तो गद्य में लिखो, लेकिन सठियाए आवारा का कलम भी ऐसा ही है। इसकी आवारगी के चक्कर में कई गंभीर काम छूट जाते हैं। लेकिन लेखक की तो कलम कलम के मूड से साथ सहअस्तित्व मजबूरी है। इस पाप की जिम्मेदारी नाम न बताऊंगा, एक लेखक-कवि की है, एलीनेसन पर जिनके एक काव्यात्मक पोस्ट पर मेरा कलम हाथ से निकल गया और----)
(ईमि: 08.01.2017)

No comments:

Post a Comment