क्यों कोई हाहाकार मचाएगा
जब एक अनाम बूढ़ी औरत
ज़ुल्म के प्रतिकार में
करती है सत्याग्रह का अनूठा प्रयोग
उतार देती है कपड़े राज महल की ड्योढ़ी पर
करने को हाकिम को शर्मसार
लेकिन ऊपर उठ चुके हैं वे तो
दुनियावी जज्बातों से
शर्म-हया की छोटी बातों से
वैसे बहुत नफासतपसंद हैं हमारे बंदानवाज
दिन में कई बार कपड़े बदलते हैं, कई बार बात
उस औरत को हक़ तो नहीं मिला
हरा दिया मगर उसने हुकूमत को
वैसे विरोध का यह तरीका नया नहीं है
मणिपुर की महिलाओं ने भी किया था
कई साल पहले ऐसा ही प्रदर्शन
भारतीय सेना के पौरुष-प्रदर्शन के विरुद्ध
ललकारा था बलात्कार के लिए सेना को
जब मार डाला था उनने मनोरमा को
नोचने-खसोटने के बाद
तब भी कोई हाहाकार नहीं मचा था
हां कुछ हलचल मची थी
दब गई थी जो भारत माता के जयकारे के शोर में
तब भी उनकी जीत तो नहीं हुई
लेकिन हुकूमत तब भी हारी थी
हम शांतिप्रिय लोग हैं
कभी कुछ हलचल तो करते हैं
मगर किसी भी बात पर हाहाकार नहीं मचाते
वैसे भी यह कोई नई बात नहीं है
बेबसी में औरतों के कपड़े उतारने की रवायत रही है
(ईमि: 07.01.2017
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