Tuesday, January 24, 2017

न्यायतंत्र

भारत की न्यायपालिका क्या वाकई बिकी हुई है? जिस सूचना आयुक्त ने दिल्ली विवि को मोदी की डिग्री की सूचना सार्वजनिक करने का निर्देश दिया उसे हटा दिया गया और माननीय न्यायालय ने उसपर रोक लगा दी. जिस जज ने तड़ीपार को अदालत में पेशी से छूट नहीं दी उसे हटाकर किसी वफादार जज को बैठा दिया जो उसे क्लीनचिट देकर रिटायर होने के बाद राज्यपाल बन गया. महामहिम न्यायाधीश महोदय दिविवि द्वारा 1978 का बीए की परीक्षा के दस्तावेज मुहैय्या कराने से देश की सुरक्षा या न्याय व्यवस्था पर क्या खतरा आ जाएगा? इससे यही तो पता चलेगा कि भारत के प्रधानमंत्री ने अपनी शिक्षा के बारे में गलत हलफनामा दिया है जो इतना फरेबी है कि इतना हो-हल्ला के बाद भी अपनी डिग्री के सवाल पर मन की बात कहने से बच रहा है. क्या रिटायर होने के बाद राज्यपाली या ऐसे ही किसी पद के लिए अपनी जमीर और न्यायिक नैतिकता को बेच दिया है? आपकी प्रतिबद्धता संविधान के प्रति है या फर्जीबाड़े के? क्या उर्जित पटेल की तरह आपने भी गले में पट्टा बंधवा लिया है? यदि यह अदालत की अवमानना है तो मुझे जो सजा देना चाहें, मैं राजी हूं..

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