यूरोपीय नवजागरण काल के दार्शनिक मैक्यावली समझदार शासक को सलाह देता है कि राज-काज के लिए छल-फरेब, धोखा-धड़ी जरूरी है लेकिन दिखना समझदार राजा को संत-महात्मा; दयासागर-करुणानिधान चाहिए. जनता भीड़ होती है, वह दिखावे को ही हक़ीकत मान लेती है. कुछ लोग हकीकत जान लेते हैं लेकिन राज्य मशीनरी तो उसके पास है ही और जनता का बड़ा हिस्सा साथ हो तो इनकी कौन सुनेगा और इन्हें आसानी से ठिकाने लगाया जा सकता है. पता नहीं 500 सालों में मष्तिस्क का कितना विकास हुआ कह नहीं सकता. लेकिन कई बार पीड़ाजनक एहसास होता है कि मैक्यावली एक सर्वकालिक लेखक है जो नवजागरण के निरंकुश राजशाही से लेकर उदरवादी; उदारवादी जनतांत्रिक; कल्याणकारी और नवउदारवादी राज्यों तक के लिए प्रासंगिक लगता है.
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