सैनिक ऐतिहासिक रूप से हुक़ुम का गुलाम और लुटेरा रहा है, वैतनिक हत्यारा. वर्दी के बदले वह अपनी चिंतनशक्ति और अंतरात्मा गिरवी रख देता है. उसका दिमाग खाली कर उसमें राष्ट्रोंमाद भर दिया जाता है. वह उनको दुश्मन बनाता है जिससे उसकी कोई दुश्मनी नहीं होती. शिवाजी और औरंगजेब दोनों की सेनाओं में भोजपुरिया सैनिकों की भरमार थी. जो सेना 1947 तक अंग्रजों के हुक्म से हिंदुस्तानियों का कत्लेआम करती थी वह 1947 का बाद (1948) नेहरू-पटेल के हुक्म से वही काम करती रही, तेलंगाना पहला प्रयोग था. छत्तीसगढ़; उत्तरपूर्व; कश्मीर में प्रयोग जारी है. रूस में क्रांति सैनिक-विद्रोहियों के बिना शायद ही उस अंजाम तक पहुंचती.
Tuesday, January 10, 2017
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