भारतीय और पाश्चात्य का अंतर कर तथाकथित भारतीय श्रेष्ठता पर खुश होना भी उसी तरह क्षणभंगुर आनंद है जैसे जलेबी खाने का। सर्वे संतु सुखिनः कहकर किसी समुदाय विशेष को उस सर्वे से अलग करना दोहरापन और मिथ्या आनंद है। यह दोहरापन और मिथ्या चेतना सभी सभ्यताओं का अंतर्निहित गुण है, क्योंकि सभ्यता दोहरेपन का संचार करती है, व्यक्ति दिखना वह चाहता है, जो होता नहीं। वास्तविक प्रसन्नता जीवन के हर आयाम में आत्मानुभूति है। 'खाओ-पिओ-मस्त रहो' उपयोगितावादी खुशी (सुख) है। नैतिक जीवन यानि मनुष्य के नाते जीवन की हर भूमिका में आत्मानुभूति वास्तविक सुख है। जैसे एक पत्रकार के रूप में ईमानदारी से वस्तुनिष्ठ समाचार का प्रसारण जीवन के उस आयाम में आत्मानुभूति है। एक शिक्षक के नाते ज्ञान प्राप्त करने के लिए, उन्हें हर बात पर सवाल करने की सीख देकर ईमानदारी से छात्रों में विवेकशीलता तथा नैतिक मूल्यों का संचार करना जीवन के उस आयाम में आत्मानुभूति है। कुल मिलाकर अपनी क्षमताओं को कार्यरूप देना ही सुख है। एक फिरकापरस्त दंगाई की आत्मानुभूति समाज में फिरकापरस्त नफरत का जहर फैलाकर सफलता पूर्वक दंगा कराने में होती है, वही उसका सुख है। एक क्रांतिकारी को समाज में सामासिकता और प्रेम फैलाने में आत्मानुभूति होती है, वही उसका वास्तविक सुख है। The real happiness lies in realizing one's nature.
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व्यक्ति दिखना वह चाहता है, जो होता नहीं। यही सत्य है।
ReplyDeletedefinitely
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