दुनिया में पहले भी महामारियां आईं, मनुष्य ने निपट लिया, इससे भी निपट लेगा। श्रमशक्ति बेचकर रोजी कमाने के अर्थ में समाज का बहुत बड़ा हिस्सा मजदूर है, लेकिन पूंजीवाद हिंदू जातिव्यवस्था की तरह मजदूरों का ऐसा पिरामिडाकार ढांचा बनाया है कि सबसे नीचे वाली तह के लोगों को छोड़कर सबको अपने से नीचे देखने को कोई-न-कोई मिल जाता है। यह इसलिए लिखा कि सबसे नीचे वाली सीढ़ियों के मजदूरों का शहरों से गांवों की तरफ विलोम पलायन अभूतपूर्व है। विलोम पलायन इसलिए कि विषम तथा असंतुलित विकास की नीति के चलते गांव से शहर तथा एक प्रांत के गांव से दूसरे प्रांत के शहर में पलायन आम बात है। केंद्र और राज्य सरकारों की असंवेदनशीलता और कमनिगाही के चलते करोड़ों की संख्या में मजदूर बच्चों और सामान के साथ सैकड़ों मील पैदल चलकर गांव जा रहा है। इस पलायन ने 1947 के बंटवारे के पलायन की याद ताजा कर दी है। खबरों के अनुसार, अभी तक 150 से अधिक लोग सड़क दुर्घटना और भूख-प्यास से जान गंवा चुके हैं। पंजाब और राजस्थान से बिहार, झारखंड और बंगाल ले जाते मजदूरों के ट्रकों की उप्र के औरैया में भिड़ंत में कई मजदूरों की मृत्यु हो गयी और मृत तथा घायल एक ही ट्रक में भेजे जा रहे थे। झारखंड के मुख्यमंत्री के ट्वीट के बाद ट्रक को प्रयागराज में 5 घंटे के लिए रोक दिया गया।
ये मजदूर गांव पहुंचकर भी क्या खाएंगे? फिलहाल शहर की बदहाली छोड़कर वे पैदल ही गांव की अनिश्चितता की तरफ भाग रहे हैं।
प्रधानमंत्री जी कह रहे है कि लोगों की मदद कीजिये यदि कोई करता है तो करने भी नही दिया जा रहा है। सत्ता पर काबिज गिद्धों का समूह हर चीज में राजनीति के नफा नुकसान की गणित लगा कर काम कर रहा है तुर्रा ये की देश संकट में है कोई राजनीति न करे। दिल्ली-उप्र सीमा पर फंसे मजदूर उप्र और बिहार पैदल ही जा रहे हैं। इन मजदूरों के लिए कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने उन्हें बसों से घर छोड़ने की पेशकश की। बसें खड़ी हैं।
यह रेल गाड़ी नही है। ये बसें हैं जो मजदूरों को लेकर उत्तरप्रदेश में प्रवेश के इंतजार में हैं। योगी बाबा की सरकार इन्हें प्रदेश में प्रवेश नही करने दे रही है क्योंकि इन बसों का भाड़ा कांग्रेस की तरफ से प्रियंका गांधी ने दिया है।
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