Some people suffering from Modiyapa raised the issue of dichotomy b/w democracy and communism, my reply to them:
हम वामपंथी इस लोकतंत्र को वुर्ज़ुआ (पूंजीवादी लोकतंत्र) कहते हैं जिसमें से लोक उसी तरह गायब है जैसे प्लेटो की रिपब्लिक से पब्लिक. लेकिन जब भी इस पूंजीवादी लोकतंत्र पर पूंजीवादी फासीवाद का खतरा होता है, तो पूंजीवादी संविधान की रक्षा में कम्युनिस्ट अगली कतार में होते हैं. क्रिस्टोफर कॉडवेल (स्टडीज ऐंड फर्दर स्टडीज इन अ डाइंग कल्चर के लेखक)एक कम्युनिस्ट थे और अपने देश इंगलैंड में साम्राज्यवाद से लोकतंत्र को खतरे के खिलाफ लिखते रहे ऐर जब लोकतंत्र पर एक दूसरे देश स्पेन में फासीवाद का खतरा मंडरा रहा था तो कलम छोड़े बिना बंदूक उठा लिया और लोकतंत्र की रक्षा में लड़ते हुए शहीद हो गये युवा कॉमरेड कॉडवेल. जब तथाकथित अंग्रेजी लेोक तंत्र हिंदुस्तानियों के लोकतांत्रिक राष्ट्रीय आंदोलन का, भाड़े के हिंदुस्तानी सिपाहियों के बदौलत बर्बर दमन कर रहे थे, लीगी-संघी-जमाती-हिंदू महासभाई आंदोलन का विरोध करके प्रत्यक्ष-परोक्ष रूप से अंग्रेजों की दलाली कर रहे थे तब कम्यिस्ट पार्टी ऑफ ग्रेट ब्रिटेन के 2 कॉमरेड मेरठ कॉंसपिरेसी केस में हिंदुस्तान में जेल में बंद थे जिन्होने वापस जाने के सारे प्रलोभन टुकरा कर जेल की यातना भोगना पसंद किया. 1942 के भारत ठोड़ो आंदोलन के दौरान जब भाजपेयी और अन्य संघी क्रांतिकारियों की मुखबिरी कर रहे थे और सावरकर सभाएं करके अंग्रेजी फौज में हिंदुस्तानियों की भर्ती करवा रहा था उस समय इंगलैंड के कॉमरेड भारत छोड़ो आंदोलम के पक्ष में इंगलैंड के शहरों कस्बों में घूम घूम कर नुक्कड़ नाटक और सभाएं कर रहे थे. एक नाटक मेरठ षड्यंत्र मुकदमें पर था. जी हां हम कम्युनिस्ट इस जनतंत्र को नकली जनतंत्र मानते हैं जो जनता के नाम पर अडानियों-अंबानियों-टाटाओं-वालमार्टों-एनरॉनों-...के हितों का पोषण करता है. पूंजावाद और पूंजीवादी जनतंत्र एक दोगली(वॉस्टर्ड) व्यवस्था है जो जो कहता है कभी नहीं करती और जो करती है कभी नहीं कहती, जिसके ज्वलंत उदाहरण चुनावी पार्टियां हैं. इनके खथनी करनी के अंतर्विरोध के स्पेस का इस्तेमाल हम क्रांतिकारी जनचेतना के निर्माण में करते हैं जो काम बुतपरस्तों-मुर्दा परस्तों के मुल्क में कठिन है, लेकिन आसान काम तो हर कोई कर सकता है. आनंद की इस पोस्ट को 200 लोगों ने लाइक किया है. हम काशीवासियों के फासीवादी ताकतों के विरुद्ध संघर्ष को नैतिक समर्थन देने और राजनैतिक निर्वाण में मोदी की मदद करने बम बनारस जा रहे हैं. मोदी को मैंने सलाह दी थी कि बढ़ौदा में अपनी नाक बचाए नहीं तो दोनों जगह से हारेगा लेकिन इतिहासभोध से शून्य अहंकारी तानाशाह को सद्बुद्दइ नहीं आई और वब हर हर मोदी करवा कर नमो नमो स्वाहा करवाने पहुंच ही गया बनारस. यदि इतनी ही बिकी मीडिया की मोदी लहर है तो वह हर पार्टी के भ्रष्ट और न टिकट पाने वाले अपराधियों को क्यों उम्मीदवार बना रहा है. क्यों उदितराजों और रामविलोसों को भरती कतर रहा है. 16 मई को हार की खबर से हिटलर का यह मानसपुत्र हिटलर के अंत की भी नकल करेगा कि नहीं, कह नहीं सकता, बीबी छोड़कर सरकारी तंत्र के इस्तेमाल से सीटियाबाजी करने वाले लंपट का कदई ईमान-धरम नहीं होता. जिस भी मोदियाये ज़ाहिल से इसका एक गुण पूछिए जिसने हत्या-बलात्कार के आयोजक इस नरपिशाच को उनका आराध्य बना दिया है तो एक जवाब 16 मई. हम 16 मई भी देख लेंगे. हमारा काम है जनहित में लड़ना और जनवादी चेतना का विकास वह हम सारे जोर-जुल्म सहते हुए अंतिम सांस तक जारी रखेंगे. अंत में नमो नमो स्वाहा.
29.05.2014
29.05.2014
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