Sunday, May 3, 2020

लल्ला पुराण 323 (कोरोना)

Raj K Mishra हम तो अपने किराए के घर में नजरबंद हैं, बेटी ने कहा बुढ़ापे औरदिल के मरीज होने से ज्यादा vulnerable हूं। सारे भक्त सरकार की ओर से यही सवाल पूछते हैं? वैसे सरकारी नौकरी करने के अलावा आपने क्या किया? हम सरकार पर सवाल उठा रहे हैं, आप पर नहीं, आप झारखंड सरकार के एक मुलाजिम हैं, भारत सरकार नहीं। हम भी सरकार नहीं हैं, न ही हमारे पास पीएम केयर फंड का पैसा है, न हीकोई सेठ-महाजन हैं, एक रिटायर्ड प्रोपेसर हैं जिसकी पेंसन का अप्रूवल अभी कोरोना में फंसा है। हमने पीएम राहत फंड में समुचित योगदान दिया, एक परिचित के घर में 3 भाई-बहन प्राइवेट नौकरियां करते हैं, किसी की तनखाह नहीं मिली, उनका 2 महीने के रसोई के खर्च का इंतजाम किया। विवि में रिक्शा लगाने वाले घर गए बिहार के एक रिक्शेवाले के खाते में कुछ पैसे डाला, काम वाली को 3 महीने की तनखाह दिया, झुग्गी बस्ती में राशन बांटने वाले एक एनजीओ को चंदा दिया, बाकी अपना घर चला रहे हैं। यह चिरकुटई तमाम लोग करते हैं किसी समस्या पर सार्वजनिक राय पर वही सवाल आप क्या कर रहे हैं, सार्वजनिक समस्याओं में निजी प्रयास नगण्य परिणाम वाले होते हैं। आप जैसे गंभीर व्यक्ति से ऐसे ओछे सवाल की उम्मीद नहीं थी। सादर।


Raj K Mishra हर व्यक्ति कुंवर सिंह नहीं होता, अंग्रजों से लड़ने और एक अदूरदर्शी सरकार के कुशासन में महामारी से लड़ने में फर्क है। वही तो मैंने पूछा कर्मठता से नौकरी करने के अलावा जवानी में आप क्या कर रहे हैं? या वामी-कामी करने वाले अन्य तमाम नौजवान क्या कर रहे हैं? मैं तो सरकारी आदेश से घर में बंद कह कर जितना कर सकता हूं कर रहा हूं, सरकारी कुकृत्यों की आलोचना भी सकारात्मक काम है। मैं तो आपकी उम्र में 4 फुलटाइम काम कर रहा था। सार्वजनिक विमर्श में निजी होना कुंठा की अभिव्यक्ति तथा चिरकुटई है। निश्चित ही मैं कुंवर सिंह नहीं हूं, वे तलवार के डीजीपी थे मैं कलम का अदना सिपाही। कुंवर से कर्मठ समझने की भूल के क्षमा मांगा है तो कर दिया।

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