मजदूर के पक्ष में कानून तमाम शहादतों के साथ मजदूरों के अनवरत संघर्षों के परिणाम हैं जिन्हें महामारीकी आड़ में कई प्रांतीय सरकारों ने अध्यादेशों के जरिए एकझटके में खत्म कर दिया। काम के 8 घंटे के अधिकार के लिए संघर्ष में शिकागो में 1886 में कई मजदूर नेता शहीद हुए थे। जिनकी शहादत को याद करने के लिए मई दिवस मनाया जाता है, खून से सनी जिनकी कमीजों को परचम बनाकर मार्च किया और लाल रंग को क्रांति का रंग तथा लाल परचम को क्रांति का झंडा बना दिया। श्रम कानूनों को रद्द कर काम घंटे बढ़ाकर सरकार ने मजदूरों के स्वास्थ्य और जीवन अवधि के साथ तो खिलवाड़ किया ही है, 45 सालों में उच्चतम बेरोजगारी में इजाफे का भी इंतजाम कर दिय़ा है। काम के ठेकेदारी करण ने काम के घंटे अनौपचारिक रूप से वैसे ही बढ़ा दिया था, अध्यादेशों ने उसे औपचारिक, कानूनी वैधता प्रदान कर दी है। पत्रकारों का काम बौद्धिक होता है जिसमें पढ़ने-सोचने का भी समय लगता है, इसलिए उनके काम के 6 घंटे का कानून था, रात ड्यूटी में 5.30 घंटे।
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