Friday, May 15, 2020

मार्क्सवाद 218(महामारी का अर्थशास्त्र)

देश भयानक आर्थिक संकट के दौर में प्रवेश कर रहा है। चीन से समस्या शुरू हुई उसने नियंत्रण कर लिया और लाकडाउन नहीं किया। यहां प्रवासी मजदूर अपने काम के शहरों में भूखों मर रहे हैं, ट्रकों में भरकर, सीमित गाड़ियों में या पैदल अपने अपने देश (गांव) जा रहे हैं, कितने रास्ते में ही काल के गाल में समा जा रहे हैं। मजदूर कानून खत्म कर काम के घंटे बढ़ाए जा रहे हैं। 16 मजदूर रेल की पटरी पर कटकर मर गए। कल पंजाब से पैदल बिहार जा रहे कई मजदूरों के मजफ्फरनगर के पास रोडवेज की बस ने कुचल कर मार डाला। किसान बेहाल हैं, खाएगा इंसान अंततः अनाज ही। सरकार धनपशुओं के लिए सब कर रही है, 20 लाख करोड़ अंततः पूंजीपतियोॆ के पास पहुंचेगी। लोगों के पास खरीदने का पैसा नहीं होगा, अर्थव्यवस्था मंदी के रसातल में धंसती जाएगी। मरता क्या न करे, भूखे नंगे सड़कों पर निकलेंगे, दुकानें, गोदाम लूटेंगे। गोदामों में अनाज सड़ रहा है, सरकार मजदूरों के लिए खोल नहीं रही है। भविष्य अनिश्चित है।

चीन ने राष्ट्रव्यापी लाकडाउन नहीं किया था, तथा महामारी पर शीघ्र ही नियंत्रण पा लिया। जिन देशों में स्वास्थ्य सुविधाएं सार्वजनिक क्षेत्र में हैं, उन्होंने शीघ्र नियंत्रण पा लिया। स्पेन और इटली स्वास्थ्य सेवाओं अस्थाई अधिग्रहण कर रहे हैं। भारत में सरकारी अस्पताल जी जान से लगे हैं, निजी अस्पताल महामारी का फायदा उठाकर मुनाफा कमाने में लगे हैं।

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