एक भगवान और कोरोना से संबंधित पोस्ट पर मैंने हास्य भाव से कहा कि मेरी पत्नी हर रोज पूजा करते समय दुर्गा जी से कोरोना के विनाश के चमत्कार की प्रार्थना करती हैं लेकिन दुर्गाजी ने अभी तक चमत्कार किया नहीं। उस पर एक सज्जन ने नास्तिकता पर प्रशन खड़ा करते हुए कहा पैगंबर पर कुछ कहने की मजाल नहीं है। उस पर:
हम तो दुर्गा जी का पाठ नहीं करते मेरी पत्नी करती हैं, वे मेरी ही तरह स्वतंत्र इंसान हैं। नास्तिकता का कोई घोषणापत्र नहीं होता, वह विवेक और साहस की बात होती है। मैंने यहां तो नास्तिकता की कोई घोषणा नहीं की? बाकी तमाम धार्मिक यही कहते रहते हैं इस पर कहते हो उस पर कुछ कहने की मजाल नहीं। बिना संदर्भ अंधभक्तों की तरह अभुाना हमें नहीं आता। इतना फालतू समय नहीं है कि भगवानों-खुदाओं पर खर्च करूं। खुदाओं की पोल तो इसी से खुल जाती है कि पैगंबरों वाले भगवानों और अवतारों वालों में इतनी दुश्मनी होती है। उनके अंधभक्तों में अपनी दुश्मनी निपटाने का दम नहीं होता नास्तिकों के माध्यम से निपटाना चाहते हैं। आपकी अलग बात नहीं है हर तरह के धर्मांध ऐसी ही की बातें करते हैं कि इस भगवान या अवतार के बारे में बोलते हो, उसके बारे में क्यों नहीं। वैसे खुदा या भगवान या और जो भी उसके नाम हों, इस महामारी का विनाश क्यों नहीं करता। या तो करना नहीं चाहता जो अनिष्ट है या करने की शक्ति नहीं; या न करना चाहता है, न करने की शक्ति ही है। दोनों ही बातें खुदाई के खिलाफ हैं। सादर।
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