मजदूरों का शोषण तथा उनके अतिरिक्त श्रम से अर्जित अतिरिक्त (सरप्लस) मूल्य से पूंजी का संचय पूंजीवाद की अंतर्निहित प्रवृत्ति है। पूंजीवाद को ध्वस्त होने से बचाने के लिए, सोवियत मॉडल की मौजूदगी और मजदूर आंदोलनों के दबाव में कल्याणकारी पूंजीवादी राज्य में मजदूरों के पक्ष में कानून बने थे। जिन्हें भूमंडलीीकरण के बाद एक एक कर समाप्त किया जाने लगा। उप्र समेत कई राज्य सरकारों ने महामारी का फायदा उठाकर श्रम कानूनों को निलंबित करने के अध्यादेश पारित कर दिया है जिससे मजदूर बंधुआ गुलाम बन जाएगा। काम के घंटे बढ़ाकर मजदूरों के स्वास्थ्य, दक्षता और जीवन अवधि के साथ खिलवाड़ तो किया ही है 45 सालों में उच्चतम बेरोजगारी की समस्या को भी और विकट कर दिया है।
पूरी दुनिया के पूंजीपति क्यों उत्पादक अर्थव्यावस्था से हाथ खींच आवारा पूंजी की अर्थ व्यवस्था को प्राथमिकता दे उपभोक्ता वस्तुओं के लिए चीन पर निर्भर हो गए? चीन अपने सस्ते श्रम का शोषण कर उपभोक्ता वस्तुओं का दुनिया का सबसे बड़ा निर्यातक हो गया है।भारत का गरीब उसी के सस्ते फोन और चप्पल खरीद सकता है। मेक इन इंडिया के नाम पर आई कई बड़ी विदेशी आईटी कंपनिया लाखों को बेरोजगार कर दुकान समेट कर चल दीं।
पूरी दुनिया के पूंजीपति क्यों उत्पादक अर्थव्यावस्था से हाथ खींच आवारा पूंजी की अर्थ व्यवस्था को प्राथमिकता दे उपभोक्ता वस्तुओं के लिए चीन पर निर्भर हो गए? चीन अपने सस्ते श्रम का शोषण कर उपभोक्ता वस्तुओं का दुनिया का सबसे बड़ा निर्यातक हो गया है।भारत का गरीब उसी के सस्ते फोन और चप्पल खरीद सकता है। मेक इन इंडिया के नाम पर आई कई बड़ी विदेशी आईटी कंपनिया लाखों को बेरोजगार कर दुकान समेट कर चल दीं।
No comments:
Post a Comment