फिलहाल मैं चुंगी से विदा लिया हूं तो वहां नहीं लिख रहा, लेकिन आपके गंभीर आरोपों का बिंदुवार जवाब देना आवश्यक समझता हूं, इसलिए आपके कमेंट के साथ जवाब आपकी वाल पर पोस्ट कर ऱहा हूं, आपत्ति जनक लगे तो डिलीट कर दीजिएगा।
1. डॉ. प्रमोद रंजन बहुजनवादी फॉर्वर्ड प्रेस के संपादक थे और मैं उनके नहीं फॉर्वर्डप्रेस में छपे अपने लेख शेयर करता हूं। मिथक की व्याख्या का सबका अपना अधिकार है। जो दुर्गा को आराध्य मानते हैं उन्हें मिथक की व्याख्या का जितना अधिकार है उतना ही बहुजन तथा जो आदिवासी महिषासुर को अपना आराध्य मानते हैं, उन्हें उसकी वैकल्पिक व्याख्या का, जिसके खंडन का आपको अधिकार है। मैं अब उस प्रकाशन के लिए अन्य कारणों से नहीं लिखता। आपका डबल स्टैंडर्ड का आरोप बेबुनियाद और पूर्वाग्रह-दुराग्रहपूर्ण है। नैतिकता की आपकी दृष्टि से मैं असहमत हूं तथा भिन्नता का स्वागत करता हूं। नैतिकता की अलग समझ किसी के गाली देने का औचित्य साबित करने का कारण नहीं हो सकता, जो आप परोक्ष रूप से कर रहे हैं।
2. प्रमोद रंजन पर भड़कने का मेरे पास कोई कारण नहीं है, आपके कारणों से अपनी दृष्टि तय करने का मेरे पास कोई कारण नहीं है। उनके विचारों से आपको परेशानी है तो आप उन पर भड़कें। यह तो वाहियात तर्क है कि यदि महिषासुर समर्थकों पर भड़कूं तभी किसी महिला के चरित्रहनन के विरोध को आप सुनेंगे। महिला के चरित्रहनन वाले के साथ खड़ा होना आपकी स्वतंत्रता है।
3. MCP स्त्रियों को सेक्स मशीन और निम्नतर समझने वालेपुरुषों के लिए स्त्रीवादी विमर्श की स्वीकृत मानक मुहावरा है।
4. मैं अपने व्यवहार की समीक्षा वैसे ही करता रहता हूं और तदनुसार विभिन्न विषयों पर विचार बदलता हूं। आपको गाली-गलौच करने वाले चंद लोग 'लोग' के प्रतिनिधि लग सकते हैं, मुझे वे 'लोग' के अपवाद लग सकते हैं।
5. पहले पैदा होने के कारण उम्र और फलस्वरूप अनुभव तो अधिक हैं ही, लेकिन इससे विद्वता की त्रेष्ठता की गारंटी नहीं है। जैसे कोई अंतिम सत्य नहीं होता वैसे ही कोई अंतिम ज्ञान नहीं होता, ज्ञान अनवरत प्रक्रिया है और अनुभव की गुणवत्ता तथा संस्कारगत पूर्वाग्रहों एवं सस्ती लोकप्रियता की लालसा से ऊपर उठ कर सोचने के सामर्त्य पर निर्भर करता है।
अंत में शुभकामना करता हूं कि जातीय-धार्मिक पूर्वाग्रहों से ऊपर उठ विषयों की विवेकसम्मत, वस्तुनिष्ठ समीक्षा एवं तदनुसार दुनिया बदलने की प्रक्रिया में अपनी भूमिका निर्धारित करने में सामर्थ्य हासिल हो।
मैं फिलहाल चुंगी पर विमर्श में शिरकत से परहेज कर रहा हूं, यदि उचित समझें तो अपने कमेंट का मेरा जवाब वहां कॉपी पेस्ट कर दें।
सस्नेह
ईश मिश्र
सर आप जिसके लिंक शेयर करते हैं न प्रमोद रंजन,फॉरवर्ड प्रेस वाला उसकी कम्पनी तो दुर्गा माँ को ही वेश्या बोलती है।
आप उसके लेख शेयर करते हैं, उसके लिए लिखते हैं। यह डबल स्टैंडर्ड क्यों?
और यदि आप यह डबल स्टैंडर्ड रखते है तो आपके द्वारा नैतिकता की बात करना बेमानी है।
यदि प्रमोद रंजन पर भी इस प्रकार भड़के हों तो ही वास्तव में आपकी उक्त महिला पर बात कोई सुनेगा वरना कोई आपकी बात क्यों सुने जब आप दुर्गा को वेश्या कहनेवाले के साथ खड़े रहते हैं और ये जफरा या नाम नही याद आ रहा के लिए MCP और XYZ लिखते हैं?
जिसने भी ये सब कहा वह निंदनीय है, एकदम गलत लेकिन प्रश्न यह है कि यह सब बार बार आप के ही साथ क्यों होता है?
यदि बार बार लोग मुझे ऐसा कहने लगे तो एक बार मैं अपने व्यवहार की समीक्षा अवश्य क्ररूँगा बाकी आप मुझसे विद्वता में भी श्रेष्ठ हैं और अनुभव में भी।
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Raj K Mishra आपने निंदा नहीं की, लेकिन किसी के द्वारा मुझे गाली देने के प्रसंग पर अन्य विषयों पर मेरे रुख को परोक्ष कारण के रूप में पेश किया। राजनैतिक विरोधियों के विरुद्ध वाजिब तर्क के अभाव में चरित्र हनन आसान है। मेरे एवं कुछ अन्य मुखर बुद्धिजीवियों के विरुद्ध चरित्र हनन का सुनियोजित अभियान चलाया गया था, अपनी दोस्तो और छात्राओं के साथ के चलते बच गया। इसीलिए और भी किसी के चरित्र हनन के विरुद्ध हूं। आप सरूफा के राजनैतिक विचारों का खंडन मंडन करिए, उसका यौनिक चरित्र हनन नहीं। आंदोलन में उसकी भागीदारी के विरिुद्ध कतर्क करिए, उसके 'खसमों' का हिसाब मत मांगिए। मैंने कभी किसी को हरामखोर, लंपट या चिरकुट नहीं कहा, प्रवडत्तियों को कहा। 'जंग चाहता जंगखोर ताकि राज करे हरामखोर', नारा है। मजदूर होकर मालिक होने का मुगालता पालने वाले तथा मालिकों का हित साधन करने वालों को मार्क्स ने लंपट सर्वहारा कहा है। 'सार्वजनिक सरोकार के विमर्श में निजी हिसाब मांगना या आक्षेप करना चिरकुटई है'। ऐसे वक्तव्य कभी विशिष्ट संदर्भ में दिए होंगे, किसी को निजी रूप से लंपट, हरामखोर, चिरकुट कभी नहीं कहा।
ReplyDeleteनिश्चित मैं इस पुनर्पाठ से सहमत नहीं हूं, तो इसका विरोध एवं खंडन करूंगा।
ReplyDeleteइसका विरोध जिसकी प्राथमिकता नहीं, उसको गाली नहीं दूंगा। वैसे महिषासुर पुस्तक लेखों का संग्रह है, किसी लेख में वेश्या नहीं कहा गया है। गुगल लेखक उससे निष्कर्ष निकाल सकते हैं। लेकिन किसी प्रमोद रंजन की उनके विचारों के चलते मेरा निंदा न करना मुझे गाली देने का औचित्य कैसे बन गया? मैं आपसे सहमत नहीं हूं तो आप मुझे गाली देंगे। आपको महिषासुरवाद की आलोचना करने से किसने रोका है। अब कल बात करेंगे। आज मैं भी अपनी बहुत दिनों से टलती ड्यूटी कर लूं।
Raj K Mishra मैंने कभी नहीं कहा कि आपने उनका चरित्र हनन किया, और लोगों ने किया। उसका नारा लगाने का अधिकार है आपका उसके विरोध का। मेरा चिकित्साविज्ञान का ज्ञान ऐसे ही है लेकिन प्रेगनेंसी की बढ़ती अवधि में समस्याएं बढ़ सकती हैं। वह दुहाई नहीं दे रही बल्कि इसे तो छिपा ही नहीं सकती। उक्त पोस्ट पर विमर्श उसके नारे लगाने को लेकर नहीं बल्कि उसके गर्भ और उसकी शादी पर ही चल रहा था/है, जो आपत्ति जनक है।
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