Saturday, May 16, 2020

कोरोना

13 मई को भारत सरकार ने 4 लाख प्रति वेंटीलेटर की दर से 50,000 भारत में बने (मेड इन इंडिया) नेंटिलेटर खरीदने के लिए, पीएम केयर फंड से 2000 करोड़ रुपए के आबंटन की घोषणा की। आईआईटी रुरकी ने दावा किया है कि उसने बिल्कुल ठीकठाक काम करने वाले वेंटीलेटर 25,000 की दर से बनाने की क्षमता विकित कर ली है तथा भारतीय रेल ने 10,000 की दर से भारी मात्रा में उत्पादन का दावा किया और आईसाएमआर (भारतीय मेडिकल रिसर्च परिषद) की अनुमति के लिए आवेदन किया।
25 मार्च को प्रधानमंत्री ने 3 हफ्ते की देशबंदी की घोषणा करते हुए कहा था कि इस समय का इस्तेमाल स्वास्थ्य सेवाओं का बुनियादी ढांचा दुरुस्त करने में किया जाएगा। य़ूरोप और अमेरिका के अनुभवों से पता चला कि कोरोना संक्रमित मरीजों के लिए आईसीयू विंटीलेटर की भूमिका अहम है। सरकारी आकलम में पाया गया कि हमारे देश के सरकारी और निजी अस्पतालों में मिलाकर कुल 40, 000 विंटीलेटर थे लेकिन सरकारी अस्रतालों के से बहुत से बेकार पड़े थे। बंगलोर की एक कंपनी तो 2500 की दर से बिना बिजली के चलने वाले डिस्पोजेबल विंटीलेटर बनाने का दावा किया।
निजी कंपनी के आखिरी दावे को छोड़ दें तो भी जब सरकार के प्रमुख प्रतिष्ठित संस्थान कम दामों पर वेंटीलेटर का उत्पादन भारी मात्रा में बना सकते हैं तो इतने मंहगी दर से, रुरकी की बोली (25, 000) से 16000% तथा रेलवे की बोली(10,00) से 4000% अधिक दामों पर क्यों खरीदे जा रहे हैं? कोई तो बिचौलिया है जिसकी जेब में बीच की इतनी रकम जा रही है। वह कौन है?

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