भविष्य की थाती है इंकिलाब
अनादि काल से देखते आए हैं हम ये खाब
स्वतंत्र समूहों में रहते थे
हमारे आदम पूर्वज निजी संपत्ति न हुआ था ईजाद
न ही बंटा था छोटे-बड़े में हमारा समाज
सब मेहनत से पैदा करते थे भरण-पोषण का सामान
मिल-बांट कर रहते-खाते, थे सब एकसान
विकसित होते गए जैसे-जैसे श्रम के साधन
करने लगा समाज अतिरिक्त उत्पादन
जरूरी हो गया समाज में श्रम विभाजन
परजीवी और श्रमजीवी में बंट गया समाज
हुआ शासन के लिए तब शस्त्र और शास्त्र का आगाज
एकाधिकार से इन पर करने लगा परजीवी समाज पर राज
सस्त्र-शास्त्र के बल पर मजबूत होता गया वर्ग समाज
बढ़ता गया जैसे जैसे शोषण दमन का रिवाज
प्रतिक्रिया में होने लगा इंकलाब के नारों का आगाज
किया इंकिलाबी हुजूम में गुलामी के खिलाफ बुलंद आवाज
टूटीं गुलामी की बेड़ियां मगर सामंती शोषण में फंस गया समाज
पहुंचा जब सामंती शोषण के चरम पर समाज
फिर से बुलंद हुई इंकिलाब की आवाज
धवस्त हुआ सामंती महल हुआ जब इंकलाब
मजदूर बन गया किसान आया पूंजीवाद
हर इंकलाब के बाद एक से निकल दूसरे शोषण में फंसता गया समाज
टूटेगा यह सिलसिला होगा करेगा जब सर्वहारा अगला इंकिलाब
होगी तब मानवता मुक्त बनेगा समतामूलक सामूहिक समाज
हर कोई करेगा योग्यता के हिसाब से काम
हर कोई पाएगा जरूरत का हर सामान
न होगा राज न होगा कोई राज
फलेगा-फूलेगा वर्गविहीन समाज
(यूं ही कलम आवारा हो उठा)
(ईमि: 23.05.2020)
जारी...
No comments:
Post a Comment