पेंसन को बहुत से खैराती खैरात समझते हैं, ऐसे ही एक सज्जन ने एक पोस्ट डाला कि पेंसन पाने वाले रिटायर्ड लोगों को विचारधारा का गाल बजाने की बजाय समाज सेवा करना चाहिए, उस पर:
ऐसे लोग ज्यादा उपदेश देते हैं जो जीवन में एक धेले का उत्पादक काम नहीं करते, बाप-दादा से विरासत में मिली संपत्ति के निवेश से दूसरों के श्रम के शोषण से ऐयाशी और फेबुकिया बौद्धिक विलास करते हैं। पेंशन किसी मजदूर (भौतिक या बौद्धिक) की अपनी कमाई होती है, किसी बनिए की खैरात नहीं। हर रिटायर्ड कर्मचारी अपने ढंग की समाजसेवा करता है जो कुछ मूर्खों को गाल बजाना लग सकता है। कई लोग विश्वविद्यालय शिक्षा के बावजूद जन्म की अस्मिता की विरासती प्रवृत्तियों से ऊपर उठ हिंदू-मुसलमान (बाभन-ठाकुर) से इंसान नहीं बन पाते, रिटायर्ड बौद्धिक कर्मचारियों का समाजसेवा संबंधी एक दायित्व ऐसे लोगों को भाषा की तमीज सिखाते हुए इंसान बनाने का प्रयास करना भी है। सफलता-असफलता अलग बात है लेकिन प्रयास तो करते ही रहना चाहिए।
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