Thursday, May 7, 2020

लल्ला पुराण 327 (शरूफा)

तुम्हारी पोस्ट देखकर कमेंट करने से नहीं रोक पाया, वरना प्रैक्टकली (औपचारिक रूप से नहीं) मैंने इस ग्रुप से विदा लेने की एक पोस्ट डाल दिया था। लेकिन पुरानी आदतें यूं ही नहीं छूटतीं, फिर अतीत भी कोई गर्द नहीं जिसे झाड़ दिया जाए एक उड़तीकविता में। उक्त पोस्ट पर कई कमेंट्स पढ़कर अफशोस हुआ कि विश्वविद्यालय से कैसे योनकुंठित मर्दवादी नमूने निकलने लगे हैं जिनके लिए किसी स्त्री के व्यक्तित्व का सार उसके कामों या विचारों की क्षमता की बजाय उसकी योनि में केंद्रित है। एक कमेंट था कि जामिया और शाहीन बाग में उसके शौहर होने के बहुत दावेदार होंगे। एक सज्जन ने कमेंट किया कि उसके न जाने कितने खसम होंगे, मैंने पूछा कि वे अपनी पत्नी के बारे में ऐसे ही उच्च विचार रखते होंगे तो मां-बहन की गालियां देने लगे। आज जब लड़कियां हर क्षेत्र में अपेक्षाकृत आगे निकल रही हैं, आंदोलनों का नेतृत्व कर रही हैं तो कुंठित मर्दवादियों के पास इस स्त्री-प्रज्ञा और दावेदारी के अभियान को रोकने के लिे उनका चरित्र हनन आसान तरीका लगता है। आंदोलनों के नेतृत्व में स्त्रियों को देखकर मर्दवाद को कल्चरल शॉक लगता है। लेकिन स्त्री-प्रज्ञा ौर दावेदारी का जो दरिया झूमकर उट्ठा है, तिनकों से न रोका जाएगा।

आजादी का यह नारा तो रोहित बेमुला की शहादत के बाद जेएनयू आंदोलन से शुरू हुआ सार्वभऔमिक नारा बन गया है, आजादी मांगने से देश की अखंडता को कहां से खतरा पैदा हो गया है? पाकिस्तान के बच्चे भी यह नारा लगा रहे हैं। देश की अखंडता को खतरा गुलामी के पैरोकारों से है जो नफरत का जहर फैलाकर देश की संवैधानिक सामासिक संस्कृति को तार तार कर रहे हैं। एक स्त्री के लिए जिस तरह के विशेषणों का इस्तेमाल कुछ लोग कर रहे हैं, वह उनकी मानसिक स्तर का परिचायक है। यह देश जितना आपका है उतना ही उसका है, उतना ही हर नागरिक का है। यह देश 'हमारा' है, 'मेरा देश' के प्रेफिक्स में निजी स्वामित्व का बोध होता है जो आप अपनी अर्जित या विरासत में मिली संपत्ति के लिए ही कर सकते हैं।

यहां एक सफूरा की बात हो रही है, पुष्ट प्रमाणों से बताएं सफूरा क्या कहती है? अफवाह न फैललाएं। राजनैतिक विरोधियों को सरकारें गिरफ्तार करती ही हैं, पाकिस्तान की शफूराओं को वहां की सरकार गिरफ्तार करती है, वहां के भी भक्त उनका वैसे ही चरित्र हनन करते हैं जैसे यहां के। वहां की सफूराएं भी आजादी के नारे लगाती हैं। दोनों जगहों की सफूराएं एक सी हैं और उनका चरित्र हनन करने वाले कुंठित मर्दवादी भक्त भी दोनों जगह एक से हैं। दोनों जगह के गुलामों को आजादी के नारे आतंकित करते हैं।

ये नारे जेपी आंदोलन के दौर में मजदूर आंदोलन में ईजाद हुए थे लोकप्रिय हुए जेएनयू आंदोलन में कन्हैया उस समय संयोग से छात्रसंघ अध्यक्ष था। यह तो अबभूमंडलीय नारा हो गया है, पाकिस्तान के छात्रों का प्रमुख नारा है। हर तनाशाह विचारों से आतंकित रहता है और वैचारिक विरोधियों को बंद कर देता है या मार देता है लेकिन विचार मरते नहीं, फैलते हैं और इतिहास रचते हैं। सुकरात के हत्यारों का नाम कोई नहीं जानता, सुकरात के विचार सत्य के लिए दर्दन दांव पर लगा देने की प्ररणा देते हैं। बाकी गुलामों को आजादी के नारे खतरनाक ही लगेंगे।

Markandey Pandey पूरा नारा लगाते हैं, नारेबाजी का अपना स्वर, रिद्म होता है, नारे दिहराए जाते रहते हैं। मैंतो प्रोफेनल नारेबाज रहा हूं। गरीब बी चाबता है आजादी, गरीबी से भी आजादी। लड़कियां भी चाहती आजादी। दिवि में लड़कियों का एक संगठन है पिजड़ा तोड़, उनका एक नारा है, मां-बाप से आजादी, मां की भी आजादी। ये बच्चे भोले नहीं हमारे आप से बहुत आगे हैं, हमारे-आपसे अधिक समझदार भी।

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