Sunday, May 10, 2020

लल्ला पुराण 328 (राष्ट्रवाद)

उप्र में प्राइमरी स्कूल के बच्चों के पाठ्यक्रम में एककहानी है कि कोई स्वामी भारत से जापान गए तो बुद्ध के देश के होने के नाते उनका बहुत स्वागत हुआ। स्वामी जी ने उनसे कहा अगर बुद्ध सेना लेकर उनके देश पर चढ़ाई करने आ जाएं तो वे क्या करेंगे? उनका सिर धड़ से अलग कर देंगे।

यह हर अधिनायकवादी व्यवस्था द्वारा प्रचारित राष्ट्रवाद की युद्धोंमादी अवधारणा के प्रचार-प्रसार की गल्पकथा है। युद्ध का विरोध करने के कारण अपने गण से निर्वासन के चलते गृह (संघ) त्याग करने वाले बुद्ध किसी देश में सेना लेकर क्यों जाएंगे? अगर गए का सवाल वैसे ही है जैसे हम जब इलाहाबाद में पढ़ते थे तो प्रयाग स्टेसन के बाहर एक चेतावनी लिखी रहती थी, 'प्लेटफॉर्म पर साइकिल ले जाना और चलाना मना है'। अरे भाई ले जाना मना है तो चलाने का सवाल ही नहीं उठता।

यह कथा जिसने भी गढ़ा उसने राष्ट्रवाद की युद्धोंमादी अवधारणा की पुष्टि के लिए ही गढ़ा। जितने भी अधिनायकवादी शासक हुए हैं। राष्ट्रप्रेम राष्ट्र के लोगों की प्रगति से भी दर्शाया जा सकता है। मुसोलिनी और हिटलर ने भी इसीतरह केराष्ट्रवाद के दृष्टांत पेश किए और उनके अपने देशों की जो जनता अब उनके नामों से नफरत करती है, वही युद्धोंमाद में उनकी जयकार करती थी। यह गल्पकथा प्राइमरी के बच्चों की पाठ्यपुस्तक में है, बच्चों के टेंडर दिमाग पर भावुक दृष्टांतों का बहुत असर पड़ता है। क्यों बच्चों को बुद्ध की प्रेम की कहानियों की बजाय उनके नाम पर युद्धोंमाद सिखाया जाए?

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