Sunday, May 3, 2020

लल्ला पुराण 322 (भाषा की तमीज)

मैं ज्ञान का महारती नहीं हूं, ज्ञानार्जन की प्रकिया में लगा साधारण इंसान हूं, अविनय कतई नहीं है, हां अप्रिय सत्य बोलने की कुआदत जरूर है।जन्मजात ज्ञान किसी को नहीं होता, मैं तो टाट-पट्टी स्कूल से पहली पीढ़ी का पढ़ने वाला हूं। 1972 में जब इवि गया तो पढ़ने विवि जाने वाला अपने गांव का पहला लड़का था। लेकिन स्कूल में ही सही अंग्रेजी बोलना-लिखना सीख गया। शिक्षक होने के नाते आपके भले के लिए आपके पढ़ने के झूठे दावे और अज्ञान को इंगित करना अविनय नहीं साफगोई है। अंग्रेजी न जानना इतनी बुरी बात नहीं है और जानना मुश्किल भी नहीं। आपने खुद ही अंग्रजी में कमेंट शुरू किया और एक वाक्य में कई गलतियां। सीखना और गलतियां सुधारना अच्छी बात है। नवजवान हैं, अभी सीख सकते हैं, बाद में मुश्किल होता है।

कमेंट्स सोच समझकर ही करना चाहिए। सही भाषा लिखना भी जरूरी है। विद्वता झाड़ने वाले की विद्वता देखनी ही पड़ती है। मेरे अनुकूल न होने वाला जरूरी नहीं कि बेवकूफ ही हो, लेकिन किसी भी बात पर फैसलाकुन वक्तव्य देने वाला, विवि से पढ़ा व्यक्ति एक सही वाक्य न लिख पाए तो उसकी पढ़ाई की गुणवत्ता संदेहास्पद जरूर है। मैंने कहा न कि कोई जन्मजात विद्वान नहीं होता, ज्ञान एक निरंतर प्रक्रिया है, लेकिन जो अपने को सर्वज्ञ मानकर सीखना ही न चाहे वह जाहिल बने रहने को अभिशप्त है। शिक्षक होने के नाते मेरा फर्ज है कि आपको पढ़-लिख कर सर्वज्ञता की जहालत से निकलने को प्रेरित करूं। गुड नाइट।

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