पहली बात बीस लाख करोड़ की रकम गिनने गिनाने वाली बात है। सरकार इतना बड़ा पैकेज दे नहीं सकती है क्योंकि फिस्कल डिफिशियट को लेकर आईएमएफ, वर्ल्ड बैंक के साथ कमिटमेंट है। मुझे नहीं लगता कि जो रकम बाजार में आएगी वह छ सात लाख करोड़ से अधिक होगी। इतनी बड़ी रकम जुटाने के लिए सरकार नोट छापेगी। उद्योग धंधों को जो पैकेज मिलेगा वह कर रियायतों का होगा और बैंकों से अंधाधुंध कर्ज का होगा। अब जो भी पैसा बाजार में आएगा उससे सबसे पहले लोग खाने पीने की चीजों को खरीदेंगे जिससे उनके दाम बढ़ सकते हैं पर चूंकि सरकार के पास पर्याप्त खाद्य भंडार है इसलिए यहां खाद्य पदार्थों के दाम बढ़ने की संभावना बहुत नहीं है और रबी की फसल भी अच्छी हुई है। आगे यह पैसा लोग स्वास्थ्य सुविधाओं पर लगायेंगे, यहां पीएम ने लोकल पर जोर दिया है पर आप भी जानते हैं कि विश्व व्यापार संगठन के समझौते के तहत सरकार लोकल को अधिक प्रोटेक्ट नहीं कर पाएगी और पैसा बड़े व्यापारियों के पास ही पहुंचेगा, उद्योग धंधों को जो भी रियायतें मिलेंगी उसको वे कैश में कंवर्ट कर लेंगे और उस पर बैठ जाएंगे, हमारा जो एमएसएमई है वह आयात निर्यात पर अधिक केंद्रित है देश के कंजम्पशन के लिए वह बहुत उत्पादन नहीं करता है, मेरा अपना अनुमान है कि साल दो साल में ही यह पैकेज का पैसा बड़े और मजबूत हाथों में पहुंच जाएगा। आप समझ सकते हैं कि पूंजीपति मजबूत होंगे तो कमजोर वर्ग का जीना दुश्वार होगा। सरकार उद्योगों को जितनी रियायत देना चाहती है उसकी जरूरत नहीं है वे लोग पहले ही कर-चोरी, बैंक क्रेडिट के कारण कैश सरप्लस में हैं। अभी सरकार को बड़े पैकेज की जगह कमजोर वर्ग के परिवारों की महिलाओं को बेसिक इनकम देना चाहिए था और उनको फाइनेंशियल लिटरेट करती जिससे वे उस बेसिक इनकम से परिवार पालती और थोड़ा थोड़ा बचाकर छोटा मोटा निवेश कर पातीं जैसे एक बकरी पाल ली, कुछ मुर्गियां पाल लीं ऐसे ही छोटे मोटे काम। भारत के उद्योगपतियों, व्यपारियों की मानसिकता निराली है उसके केंद्र में केवल
Chandra Bhushan Pandiya
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