पेशेवर शराबियों की तरह ठेका बंद होने से कुंठित तो आप ही लग रहे हैं और मदिरा की दुकान खोलने का महिमामंडन कर रहे हैं? वामी-कामी तो आलोचना कर रहे हैं। इतनी सुंदर भाषा की तमीज और इतना उत्कृष्ट ज्ञान खुद की उपलब्धि है, इवि से अर्जित किया या शाखा में सीखा?
संगठन विशेष या व्यक्ति विशेष महत्वपूर्ण नहीं होता महत्वपूर्ण उसकी वैचारिक सोच और नीति होती है, जिसकी आलोचना या प्रशंसा होती है। लेकिन इस सरकार के अंधअनुयायियों की एक ऐसी जमात पैदा हो गयी है जो किसी आलोचना की समीक्षा तथ्य-तर्कों के आधार पर करने की बजाय बौखलाकर वामी-कामी करने लगता है। आप किन वामपंथियों को कितना जानते हैं आप ही जानें, लेकिन मेरी समझ में तो अति मानवीय संवेदना, असहमति का अदम्य साहस तथा सहमति का विवेक ही वामपंथ के मूलमंत्र हैं। अंधभक्तों के पास निराधार चरित्रहनन की विरोध सबसे आसान औजार होता है। जातिवाद आदि विकृतियों के बावजूद इवि तो कभी विद्वता और तहजीब का केंद्र हुआ करता था, मुझे तो छोड़े 44 साल हो गए। सादर। मेरी कोई बात बुरी लगी हो तो माफी। भाषा का अन्वेषण मानव विकासक्रम में एक क्रांतिकारी अन्वेषण था, इसकी गुणवत्ता बनाए रखना, हमारा कर्तव्य है।
हम क्या करेंगे यह आप जानते नहीं,उसके बारे में पाले गए दुराग्रह अभिवयक्त होते हैं। कोईअपने बारे में तो जानता नहीं लेकिन पूर्वाग्रह और विद्वेष से ग्रस्त होने के चलते दूसरे क्या करेंगे निश्चितता से बता देता है। प्रश्न सरकारकी प्राथमिकता का होता है। सरकार के कुकृत्यों का भुक्तभोगी अंधभक्त भी होता है लेकिन धर्मांधता मे सरकार की किसी आलोचना पर बौखला कर आलोचक को निजी दुश्मन समझ विवेक खो देता है, वह अपने को सरकार समझने लगता है, हैसियत चाहे जो हो। अब आपने परिचय ही ऐसे दिया कि भाषा की तमीज का श्रोत पूछना पड़ा। शुभ रात्रि। कल मिलते हैं।
संगठन विशेष या व्यक्ति विशेष महत्वपूर्ण नहीं होता महत्वपूर्ण उसकी वैचारिक सोच और नीति होती है, जिसकी आलोचना या प्रशंसा होती है। लेकिन इस सरकार के अंधअनुयायियों की एक ऐसी जमात पैदा हो गयी है जो किसी आलोचना की समीक्षा तथ्य-तर्कों के आधार पर करने की बजाय बौखलाकर वामी-कामी करने लगता है। आप किन वामपंथियों को कितना जानते हैं आप ही जानें, लेकिन मेरी समझ में तो अति मानवीय संवेदना, असहमति का अदम्य साहस तथा सहमति का विवेक ही वामपंथ के मूलमंत्र हैं। अंधभक्तों के पास निराधार चरित्रहनन की विरोध सबसे आसान औजार होता है। जातिवाद आदि विकृतियों के बावजूद इवि तो कभी विद्वता और तहजीब का केंद्र हुआ करता था, मुझे तो छोड़े 44 साल हो गए। सादर। मेरी कोई बात बुरी लगी हो तो माफी। भाषा का अन्वेषण मानव विकासक्रम में एक क्रांतिकारी अन्वेषण था, इसकी गुणवत्ता बनाए रखना, हमारा कर्तव्य है।
हम क्या करेंगे यह आप जानते नहीं,उसके बारे में पाले गए दुराग्रह अभिवयक्त होते हैं। कोईअपने बारे में तो जानता नहीं लेकिन पूर्वाग्रह और विद्वेष से ग्रस्त होने के चलते दूसरे क्या करेंगे निश्चितता से बता देता है। प्रश्न सरकारकी प्राथमिकता का होता है। सरकार के कुकृत्यों का भुक्तभोगी अंधभक्त भी होता है लेकिन धर्मांधता मे सरकार की किसी आलोचना पर बौखला कर आलोचक को निजी दुश्मन समझ विवेक खो देता है, वह अपने को सरकार समझने लगता है, हैसियत चाहे जो हो। अब आपने परिचय ही ऐसे दिया कि भाषा की तमीज का श्रोत पूछना पड़ा। शुभ रात्रि। कल मिलते हैं।
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