Swapn Kishore Singh 6 साल में विनिवेश के नाम पर सारे सार्वजनिक उपक्रम देशी-विदेशी उपक्रम देशी-विदेशी धनपशुओं को बेचकर, चीनी सिंपेथाइजर तो चीनी राष्ट्रपति के साथ नौकाविहार करते हुए, चीनी पेटीयम का विज्ञापन करने वाले जनता की खून-पसीने से चीन से हजारों करोड़ की मूर्ति बनवाने वाले हैं, मिर्ची उन्हीं को और उनके अंधभक्तों को ही लगेगी और धुआं उठेगा। बाकी कितनी प्रसन्नता होगी हम ज्ञान-विज्ञान के विकास से औद्योगिक रूप से आत्मनिर्भर हो जाएं लेकिन हम तो अंधविश्वास और धर्मांधता का विकासकर गोबर-गोमूत्र में हर समस्या का समाधान ढूंढ़ते हैं तथा कैंची और नेलकटर तक कोरिया-जापान-चीन से मंगाते हैं, मेक इन इंडिया के नाम पर बहुराष्ट्रीय कंपनियों को देश की प्राकृतिक संपदा और सस्ते श्रम के शोषण के लिए आमंत्रित करते हैं। वैसे यह मिर्ची लगने और धुंवा उठने वाली भाषा इवि में सीखे, या निजी उपलब्धि है? सादर।
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