Monday, December 29, 2014

ईश्वर विमर्श 16

Narenderakar Mishra यह तो धर्म नहीं, निजी नैतिक अाचार संहिता है. दैवीय शक्ति की अवधारणा भय अौर अज्ञान की उत्पत्ति है जिसे हर युग के शासकवर्ग अपनी ऐतिहासिक जरूरतों के अनुसार धर्म में पिरोकर लोगों को परोसता है जिसके नशे में धुत्त शासित वर्ग शोषित होते रहें. हम सब को अपने अौर समाज के लिये मानवीय मूल्यों पर अाधारित विववेकसंगत अाचार संहिता निर्मित करना चाहिये. धर्म चूंकि मानव निर्मित फरेब है, इसीलिये देश-काल के अनुसार इसकी अवधारणायें बदलती रही हैं. अापने देखा होगा जो जितना ही ज़ालिम होता है, धर्म-कर्म में उतना ही लीन. धर्म का सांप्रदायिक इस्तेमाल गैर सांप्रदायिक लोगों को भी "हम" तथा "वे" में बांट देता है. धर्म निजा मामला हो सता है उसका सार्वजनिक इज़हार क्यों?

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